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________________ 246 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन 4. ऋजुसूत्र नय __वर्तमान काल की पर्याय को ग्रहण करने वाला नय ‘ऋजुसूत्र नय' कहलाता है। वर्तमान काल में यदि कोई अध्ययनशील है तो स्वाध्यायी या विद्यार्थी कहा जाएगा। भूतकाल या भविष्यत् काल के आधार पर कथन करना, ऋजुसूत्र नय का विषय नहीं है, वह मात्र वर्तमान को विषय करता है। जैसे- वर्तमान में कोई सुख से जी रहा है, तो उसे 'ऋजुसूत्र नय' से सुखी कह सकते हैं । 5. शब्द नय ___ काल, संख्या, लिंग, कारक आदि के भेद से शब्द के अर्थ में भेद का प्रतिपादन करने वाला नय ‘शब्द नय' है। जैसे- वाराणसी नगरी थी, वाराणसी नगरी है और वाराणसी नगरी होगी। इन तीनों वाक्यों में काल के कारण जो भेद है उसे शब्द नय स्पष्ट करता है। संख्या भेद के आधार पर भेद का उदाहरण- “एक पुरुष जा रहा है। अनेक पुरुष जा रहे हैं।" इनमें प्रथम वाक्य एक पुरुष का बोधक है, जबकि दूसरा वाक्य अनेक पुरुषों का बोधक है। लिंग के आधार पर अर्थ भेद कभी होता है एवं कभी नहीं। 'बालिका जाती है' कहने पर बालिका (स्त्री) का बोध होता है, 'बालक जाता है' कहने पर बालक (पुरुष) का बोध होता है, किन्तु संस्कृत में तटः, तटी, तटम तीनों का एक अर्थ है। कारक के प्रयोग के आधार पर अर्थभेद होता है। उदाहरण के लिए 'राम पुस्तक पढ़ता है' वाक्य में राम कर्ता है। ‘राम को पुस्तक देता है' वाक्य में राम सम्प्रदान है। 6. समभिरूढ़ नय पर्यायवाची शब्दों में निरुक्ति (शब्द-निर्माण, प्रक्रिया) के भेद से अर्थ का भेद बताने वाला नय ‘समभिरूढ़ नय' है । जैसे- इन्द्र के अनेक पर्यायवाची शब्द हैंइन्द्र, शक्र, पुरन्दर, देवराज, शचीपति आदि । इन सभी शब्दों की निरुक्ति भिन्न-भिन्न है । जो इन्दन अर्थात् ऐश्वर्यशाली होता है, वह इन्द्र । जो शकन अर्थात् शक्तिशाली होता है, वह शक्र । जो पुर अर्थात् शत्रु-नगर का दारण करने या विनाश करने वाला होता है उसे पुरन्दर, देवों के राजा को देवराज और शची के पति को शचीपति कहते हैं । निरुक्ति या व्युत्पत्ति के आधार पर इन सब अर्थों में
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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