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________________ 244 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन बैठने के लिए टिकट खरीदना आदि सम्बन्धित क्रियाओं का महाविद्यालय जाने का अंग होने से नैगम नय के अन्तर्गत समावेश होता है। इसी प्रकार कोई महिला सब्जी साफ कर रही हो, उससे पूछा जाए तुम क्या कर रही हो तो वह उत्तर देती है कि मैं भोजन बना रही हूँ। भोजन बनाने की क्रिया का अंग होने से उसका सब्जी साफ करना नैगम का उदाहरण होता है। इस तरह भोजन बनाने के अंगरूप सभी क्रियाएं नैगम नय के द्वारा कही जा सकती हैं। भगवती सूत्र में ‘कडेमाणे कडे', 'चलमाणे चले' आदि वाक्य नैगम नय के उदाहरण कहे जा सकते हैं। किसी अतिथि के घर आने पर उसे हम कहते हैं- भोजन बन गया आप भोजन करके जाए । यद्यपि रसोई में भोजन बनाने की प्रक्रिया चल रही है और भोजन पूरा बना भी नहीं, तब भी ऐसा प्रयोग नैगम नय से किया जा सकता है। नैक गमः नैगमः के रूप में नैगम शब्द की निरुक्ति की जाती है, अर्थात् जिसमें अनेक प्रकार से वस्तु के स्वरूप को जाना जाता है तथा अनेक भावों से वस्तु का निर्णय किया जाता है उसे नैगम नय कहते है। अनुयोगद्वार सूत्र में नैगम नय की यही निरुक्ति दी गई है। इस प्रकार नैगम नय का स्वरूप व्यापक है, विविधता लिए हुए है। ___ लघीयस्त्रय ग्रन्थ में भट्ट अकलंक ने नैगम नय का लक्षण करते हुए कहा है कि एक द्रव्य में दो धर्मों को गौणता और मुख्यता से कहने की जो विवक्षा है अथवा जो भेद और अभेद में से परस्पर एक को गौण और एक को प्रधान करके कहता है, वह नैगम नय है। __ नैगम नय में सामान्य एवं विशेष दोनों प्रकार के धर्मों का समावेश हो जाता है। इसका समर्थन वीरसेनाचार्य, विद्यानन्द, प्रभाचन्द्र, वादिदेव सूरि आदि आचार्यों ने किया है। वादिदेव सूरि ने नैगम नय का लक्षण करते हुए कहा है- दो धर्मों की दो धर्मियों की अथवा धर्म-धर्मी की प्रधान तथा गौण रूप से विवक्षा करना, इस प्रकार अनेक मार्गों से वस्तु का बोध कराने वाला नय नैगम नय कहलाता है। दो धर्मों के प्रधान गौण भाव का उदाहरण है- आत्मा में सत्त्व से युक्त चैतन्य है। दो धर्मियों के प्रधान गौण भाव का उदाहरण है- पर्याय वाला द्रव्य वस्तु कहलाता है। धर्म
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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