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________________ 239 नय एवं निक्षेप माना गया।” अनुयोगद्वारसूत्र में चार अनुयोगद्वारों का निरूपण हुआ है- उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय। इनमें नय का उल्लेख नय की महत्ता का प्रतिपादन करता है। स्याद्वादमंजरीकार ने मुख्यवृत्ति से प्रमाण का प्रामाण्य स्वीकार करते हुए भी नयों की प्रमाण के तुल्य प्रामाणिकता स्वीकार की है। 3 प्रमाण, नय एवं दुर्नय में भेद करते हुए आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है- " सदेव सत् स्यात्सदिति त्रिधार्था मीयेत दुर्नीतिनयप्रमाणै: '14 किसी ही है, को वस्तु सत् ऐसा कहना दुर्नय है, सत् है ऐसा कहना नय है तथा कथञ्चित् (स्यात्) सत् है, ऐसा कहना प्रमाण है। प्रमाण एवं नय एक भेद यह है कि प्रमाण सकलादेशी होता है तथा नय विकलादेशी होता है । " द्रव्य एवं पर्याय दोनों का ग्रहण करने से प्रमाण को सकलादेशी तथा इन दोनों में से एक का ग्रहण करने के कारण नय को विकलादेशी कहा गया है। नयों की संख्या जानने एवं कहने के जितने मार्ग हो सकते हैं, वे सभी नय हैं। आचार्य सिद्धसेन कहते हैं 1- सत्त " जावड़या वयणपहा तावइया चेव होंति णयवाया ।" - सन्मतितर्क, 3.47 अर्थात् जितने वचन मार्ग होते हैं, उतने नय होते हैं । इस तरह नयों की संख्या असीमित होती है। वस्तु अनन्त धर्मात्मक होती है, अतः नय अनन्त भी हो सकते हैं", किन्तु व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के आधार पर द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ये दो नय प्रमुख हैं। अनुयोगद्वार सूत्र में स्पष्ट रूप से सात नयों का उल्लेख हुआ है । - मूलणया पण्णत्ता । तं जहा-णेगमे संगहे ववहारे उज्जुसुए सद्दे समभिरुढे एवंभूते । (अनुयोगद्वारसूत्र, आगम प्रकाशन समिति ब्यावर, सूत्र 606) सात मूल नय हैं- 1. नैगम, 2. संग्रह, 3. व्यवहार, 4 ऋजुसूत्र, 5. शब्द, 6. समभिरूढ तथा 7 एवम्भूत । तत्त्वार्थसूत्र के श्वेताम्बर पाठ में नय पांच कहे गये हैंनैगमसंग्रह-व्यवहारर्जुसूत्रशब्दा नयाः । ( तत्त्वार्थसूत्र 1.34 ) नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र एवं शब्द ये पांच नय होते हैं । किन्तु इस सूत्र के पश्चात् प्रदत्त सूत्र में नैगम नय के दो तथा शब्द नय के तीन भेदों का प्रतिपादन हुआ है- आद्यशब्दौ द्वित्रिभेदौ (तत्त्वार्थसूत्र 1.35)। नैगम नय के दो प्रकार हैं- देश परिक्षेपी एवं सर्व
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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