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________________ जैन न्याय में प्रमाण-विवेचन 187 भारतीय चिन्तन-परम्परा में प्रमेय पदार्थ को जानने के लिए प्रमाण को साधन अंगीकार किया गया है । प्रमेयसिद्धिः प्रमाणाद्धि','मानाधीना मेयसिद्धिः', 'प्रमाणाधीनो हि प्रमेयाधिगमः' वाक्य इसी की पुष्टि करते हैं, किन्तु जैन दर्शन में प्रमाण के साथ नय को भी प्रमेय के अधिगम में साधन अंगीकार किया गया है,-'प्रमाणनयैरधिगमः' प्रमाण एवं नय दोनों प्रमेय को जानने में सहायक हैं, तथा इन दोनों के द्वारा अर्थ की परीक्षा की जा सकती है। इसलिए जैनन्याय में प्रमाण एवं नय दोनों न्याय के विवेच्य विषय हैं, किन्तु प्रस्तुत अध्याय की सीमा होने के कारण इसमें प्रमाण-विषयक निरूपण किया जा रहा है, नय-विवेचन के लिए पृथक् अध्याय है। प्रमाण-लक्षण साधारणतः प्रमेय पदार्थ को जानने का साधकतम कारण या करण प्रमाण है। प्रमाण से प्रमेय या ज्ञेय पदार्थ को सम्यक्तया जाना जाता है। जैन दर्शन के अनुसार प्रायः स्व एवं पर पदार्थ का निश्चयात्मक अथवा व्यवसायात्मक-ज्ञान प्रमाण कहलाता है। यह सम्यग्ज्ञान, तत्त्व-ज्ञान, अविसंवादक-ज्ञान, स्वार्थव्यवसायात्मकज्ञान, स्वपर-व्यवसायि ज्ञान आदि के रूप में भी परिभाषित किया गया है, यथा1. सम्यग्ज्ञानं प्रमाणम्। स्वार्थव्यवसायात्मकं सम्यग्ज्ञानम्। - (विद्यानन्द, प्रमाणपरीक्षा, पृ.1 एवं 5 ) सम्यगज्ञान को प्रमाण कहा गया है। जो स्व एवं अर्थ का व्यवसायात्मक (निश्चयात्मक) ज्ञान होता है वह सम्यग्ज्ञान है। 2. तत्त्वज्ञानंप्रमाणं।- समन्तभद्र, आप्तमीमांसा, कारिका 101 तत्त्वज्ञानं प्रमाणमिति हि निगद्यमाने मिथ्याज्ञानं संशयादि मत्याद्याभासं व्यवच्छिद्यते। - (विद्यानन्द अष्टसहनी, श्री महावीर जी, पृ. 343 ) तत्त्वज्ञान को प्रमाण कहा गया है। तत्त्वज्ञान को प्रमाण कहने पर संशय आदि मिथ्याज्ञान एवं मति आदि ज्ञानों के आभास का व्यच्छेद होता है। 3. अविसंवादकं प्रमाणम्।- भट्ट अकलङ्क, लघीयस्त्रयवृत्ति 22 , अकलङ्कग्रन्थत्रय, पृ. 8.10 अविसंवादकं च निर्णयायत्तम्। तदभावेऽभावात् तद्भावे च भावात्।(लघीयस्त्रयवृत्ति 60),अविसंवादक ज्ञान प्रमाण होता है। अविसंवादकता निर्णयात्मकता के आधीन होती है। निश्चयात्मकता नहीं होने पर ज्ञान अविसंवादक नहीं होता है तथा निश्चयात्मकता होने पर ज्ञान संवादक होता है।
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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