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________________ सम्यग्दर्शन 167 महाव्रतधरोधीरःसर्वागमरहस्यवित्। क्रोधमानादिविजयी निग्रंथो गुरुरुच्यते।।' पंच महाव्रतधारी, समस्त आगमों के रहस्यों के ज्ञाता, क्रोध-मान आदि कषाय विजयी, धीर एवं निग्रंथ गुरु कहे गए हैं। आचार्य कुन्दकुन्द के मोक्षपाहुड में भी कथन है कि हिंसा रहित धर्म, अज्ञानादि अठारह दोषों से रहित देव तथा निग्रंथ प्रवचन पर श्रद्धा होना सम्यक्त्व है।' कार्तिकेयानुप्रेक्षा में गुरु पद का भी समावेश करते हुए कहा गया है णिज्जियदोसंदेवंसव्वजिणाणंदयावरंधम्म। वज्जियगंथं चगुरुं, जोमण्णदिसो हुसद्दिट्ठी। दोषविजेता वीतराग को जो 'देव', उत्कृष्ट दया को 'धर्म' तथा निग्रंथ को 'गुरु' मानता है, वह सम्यग्दृष्टि है। सम्प्रति वीतराग अरिहन्त-सिद्ध को देव, पंच महाव्रतधारी को गुरु एवं जिनप्रज्ञप्त तत्त्व को धर्म मानने रूप सम्यग्दर्शन के स्वरूप का अधिक प्रचलन है। किन्तु अंग एवं उपांग आगमों में प्रायः निर्ग्रन्थ प्रवचन या जिनवचन पर श्रद्धा करने का ही उल्लेख मिलता है। आचारांगसूत्र में कहा गया है-'तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पवेदितं" अर्थात् वही सत्य निश्शंक है जो जिनेन्द्रों के द्वारा कहा गया है। आचारांग के इस वचन में मात्र महावीर का नहीं, समस्त जिनेन्द्रों का कथन है । जिनेन्द्रों के द्वारा प्ररूपित वचन श्रद्धेय हैं। उपासकदशांग सूत्र में आनन्द श्रावक भगवान महावीर की धर्मदेशना सुनने के पश्चात् कहता है-सद्दहामिणंभंते!निग्गंथं पावयणं पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! 'निग्गंथ पावयणं, एवमेय भंते ! तहमेयं भंते!अवितहमेयं भंते!' अर्थात् 'हे भगवन्! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ, विश्वास करता हूँ, निर्ग्रन्थ प्रवचन मुझे रुचिकर है। वह ऐसा ही है, तथ्य है, सत्य है। निर्ग्रन्थ प्रवचन या जिनेन्द्रों द्वारा प्ररूपित तत्त्व श्रद्धेय है।' जिनेन्द्रों द्वारा प्ररूपित धर्म जब श्रद्धेय है तो जिनेन्द्र देव तो स्वतः ही श्रद्धेय हो गए। इसी प्रकार निर्ग्रन्थ-प्रवचन श्रद्धेय होने से उसके उपदेष्टा निर्ग्रन्थ गुरु भी श्रद्धेय हो गए। इस दृष्टि से देव, गुरु एवं धर्म (जिन प्ररूपित) तीनों पर श्रद्धा रखना सम्यग्दर्शन सिद्ध होता है।
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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