________________
150
जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
6. धवला, 6.1 7. आर्हन्त्यकारणं तीर्थङ्करत्वनाम।- सर्वार्थसिद्धि, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली 1991, सूत्र
8.11, पृ. 306 8. विशेषावश्यकभाष्य, दिव्यदर्शन ट्रस्ट, मुम्बई, विक्रम संवत् 2039, पृ. 1 9. विशेषावश्यकभाष्य, मलधारी हेमचन्द्र वृत्ति, दिव्यदर्शन ट्रस्ट, मुम्बई, पृ. 1 10. तित्थं पुण चाउव्वण्णाइण्णो समणसंघो, तंजहा-समणा समणीओ सावगा साविगाओ। ___-व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 20, उद्देशक 8, सूत्र 14 11. विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-चउप्पन्नहापुरिसचरियं (शीलांकाचार्य रचित) एवं
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम् (आचार्य हेमचन्द्र विरचित) 12. अरिहंत-सिद्ध-पवयण-गुरु-थेर-बहुस्सुए-तवस्सीसुं।
वच्छल्लया एएसिं, अभिक्खनाणोवओगे या। 1।। दंसण-विणए आवस्सए य सीलव्वए निरइआरो। खणलव-तवच्चियाए, वेयावच्चे समाही या।2।। अप्पुव्वनाणगहणे, सुयभत्ती पवयणे पभावणया। एएहिं कारणेहिं, तित्थयरत्तं लहइ जीवो।।3।।
-ज्ञाताधर्मकथाग, अध्ययन 8, आवश्यकनियुक्ति गाथा, 179-181 13. दर्शनविशुद्धिविनयसम्पन्नता शीलव्रतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णं ज्ञानोपयोगसंवेगौ
शक्तितस्त्यागतपसीसंघसाधुसमाधियावृत्त्यकरणमर्हदाचार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्ति
रावश्यकापरिहाणिर्मार्गप्रभावनाप्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थकृत्त्वस्य। - तत्त्वार्थसूत्र, 6.23 14. तान्येतानि षोडशकारणानि सम्यग्भव्यमानानि व्यस्तानि च तीर्थकर नाम- कर्मानवकारणानि
प्रत्येतव्यानि- सर्वार्थसिद्धि, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 6.24, पृ. 261 15. नियमा मणुयगईए, इत्थी पुरिसेयरो य सुहलेसो।
आसेवियबहुलेहिं, वीसाए अण्णयरएहिं।। - आवश्यकनियुक्ति 184, नियुक्तिसंग्रह,
हर्षपुष्पामृत ग्रन्थमाला, लाखा बावल । 16. द्वितीय कर्मग्रन्थ, बन्ध-विवेचन, गाथा 6 एवं 9-10 17. द्वितीय कर्मग्रन्थ में उदय, उदीरणा एवं सत्ता का विवेचन द्रष्टव्य। 18. द्वितीय कर्मग्रन्थ, श्री मरुधरकेसरी साहित्य प्रकाशन समिति, ब्यावर, परिशिष्ट
पृ. 201-210 19. पढमुवसमिये सम्मे सेसतिये अविरदादिचत्तारि।
तित्थयरबंधपारंभया णरा केवलिदुगंते। - गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, गाथा 93 20. णिरंतरो बंधो, सगबंधकारणे संते अद्धाक्खएण बंधुवरमाभावादो। - धवला 8.3, 38.74.4 21. निकाचित तीर्थंकर प्रकृति वाला जीव तिर्यंचगति में नहीं जाता है, अनिकाचित तीर्थंकर
प्रकृति वाले जीव के तिर्यंचगति में जाने का निषेध नहीं है, यथा - जमिह निकाइय तित्थं