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________________ कर्म - साहित्य में तीर्थङ्कर प्रकृति बाँधते हैं? उदय में कब आती है ? उदीरणा कब होती है और सत्ता में कहाँ-कहाँ रहती है? एतद्विषयक चिन्तन आवश्यक है। तीर्थङ्कर प्रकृति का उपार्जन 143 ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र में मल्लिनाथ के प्रकरण में तीर्थंकर नाम गोत्र के उपार्जन हेतु 20 बोलों का निरूपण हुआ है। 12 वे बीस बोल हैं - ( 1-7 ) अरिहन्त, सिद्ध, प्रवचन, गुरु, स्थविर, बहुश्रुत, तपस्वी - इन सातों के प्रति प्रियता, भक्ति या वात्सल्य का होना (8) ज्ञान का बारम्बार उपयोग करना ( 9 ) दर्शन सम्यक्त्व की विशुद्धि होना (10) विनय होना ( 11 ) आवश्यक क्रियाएँ ( सामायिक आदि) करना (12) शीलव्रतों का निरतिचार पालन करना (13) क्षण - लव प्रमाण काल में संवेग ( तथा भावना एवं ध्यान) का सेवन करना ( 14 ) तप करना ( 15 ) त्याग मुनियों को दान देना (16) अपूर्व अर्थात् नवीन ज्ञान ग्रहण करना ( 17 ) समाधि - गुरु आदि को साता उपजाना (18) वैयावृत्त्य करना ( 19 ) श्रुत की भक्ति करना और (20) प्रवचन की प्रभावना करना । ये सभी 20 बोल सम्यग्दर्शनी मनुष्य में सम्भव हैं। जब उसमें निर्मलता आती है तब इन 20 कारणों या इनमें से किसी के भी बार-बार आराधन से तीर्थंकर प्रकृति का उपार्जन हो सकता है। 13 तत्त्वार्थसूत्र में तीर्थंकर नाम के उपार्जन हेतु 16 कारणों का ही निरूपण है । " वे 16 कारण हैं - (1) दर्शनविशुद्धि (मोक्षमार्ग में रुचि ) ( 2 ) विनय सम्पन्नता (3) शील और व्रतों का अतिचार रहित पालन (4) ज्ञान में सतत उपयोग ( 5 ) सतत संवेग (6) शक्ति के अनुसार तप ( 7 ) यथाशक्ति त्याग ( 8 ) साधुओं की समाधि में योगदान (9) वैयावृत्त्य (10) अरिहन्त भक्ति ( 11 ) आचार्य - भक्ति ( 12 ) बहुश्रुत भक्ति (13) प्रवचन भक्ति ( 14 ) आवश्यक क्रियाओं में संलग्नता (15) मोक्षमार्ग (16) प्रवचन वात्सल्य । तत्त्वार्थसूत्र में निरूपित इन 16 कारणों को पृथक्-पृथक् रूपेण भी सम्यग्भावित किया जाये तो तीर्थंकर प्रकृति का उपार्जन सम्भव है। इन्हें तीर्थंकर प्रकृति के आनव का कारण कहा गया है। " ज्ञाताधर्मकथा में तत्त्वार्थसूत्र से चार कारण अधिक प्रतिपादित हैं, यथा- सिद्ध, स्थविर एवं तपस्वी की भक्ति तथा नये 14
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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