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________________ आगम-साहित्य में पुद्गल एवं परमाणु 9. गुणसाम्ये सदृशानाम्।-तत्त्वार्थसूत्र, 5.34 10. व्यधिकादिगुणानां तु।-तत्त्वार्थसूत्र, 5.35 11. द्रष्टव्य- तत्त्वार्थ सूत्र, 5.33-35 पर पण्डित सुखलाल संघवी कृत व्याख्या। 12. (i) अइथूलथूलथूलं थूलं सुहुमं च सुहुमथूलं च। सुहुमं अइसुहुमं इति धरादिगं होइ छब्मेय।।-नियमसार, गाथा 21 (ii) बादरबादर बादरसुहुमं सुहमथूलं च। सुहुमं च सुहमसुहमं च धरादियं होदि छब्मेय।। -गोम्मटसार, जीवकाण्ड, गाथा 603 13. गोयमा! छ संठाणा पण्णत्ता, तं जहा-परिमंडले, वट्टे, तंसे, चउरंसे, आयते, अणित्थंथे। -व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 25, उद्देशक 3, सूत्र 1 14. सत्त संठाणा पन्नत्ता, तं जहा-दीहे, रहस्से, वट्टे, तंसे, चउरंसे, पिहुले, परिमंडले।-स्थानांगसूत्र, स्थान 7 15. शरीरवाङ्मनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् । - तत्त्वार्थसूत्र 5.19 16. सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च ।- तत्त्वार्थसूत्र 5.20 17. अठारह पापों में वर्णादि का निरूपण हुआ है। द्रष्टव्य, द्रव्यानुयोग, भाग 3, आगम अनुयोग ___ ट्रस्ट, अहमदाबाद, 1995, पुद्गल अध्ययन, पृ. 1774 पर व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 12, उद्देशक 5, सूत्र 2-7 का उद्धरण। 18. द्रव्यानुयोग,भाग 3, पृ. 1774-75 पर उद्धृत व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 12, उद्देशक 5, सूत्र 8 19. द्रव्यानुयोग, भाग 3, पृ. 1777 20. ओरालियसरीरे जाव तेयगसरीरे एयाणि पंचवण्णाणि जाव अट्ठफासाणि कम्मसरीरे-चउफासे। ___मणजोगे वइजोगे य चउफासे, कायजोगे अट्ठफासे। - व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 12, उद्देशक 5, सूत्र 31, द्रव्यानुयोग, भाग-3, पृ. 1777 21. गोयमा! पओगपरिणए वा, मीसापरिणए वा, वीससापरिणए वा।-व्याख्या- प्रज्ञप्ति, शतक 8, उद्देशक 1, सूत्र 49, द्रव्यानुयोग, भाग-3, पृ. 1812 22. गोयमा! चउविहे परमाणु पण्णत्ते, तं जहा-दव्वपरमाणु, खेत्तपरमाणु, काल- परमाणु, भावपरमाणु। -व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, शतक 20, उद्देशक 5, सूत्र 15 23. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, शतक 20, उद्देशक 5 24. हंता, गोयमा! परमाणुपोग्गले णं लोगस्स पुरिथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चत्थिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छए जाव हेछिल्लाओ चरिमंताओ उवरिल्ले चरिमंते एगसमएणं गच्छ।। -व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 16, उद्देशक 8, सूत्र 13, द्रव्यानुयोग, भाग 3, पृष्ठ 1831 25. तिविहे पोग्गलपडिघाए पण्णत्ते, तंजहा- 1. परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गले पप्प पडिहम्मेज्जा, 2. लुक्खत्तात्ताए वा पडिहम्मेज्जा, 3. लोगंते वा पडिहम्मेज्जा।- स्थानांगसूत्र, अध्ययन 3,
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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