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________________ आगम-साहित्य में पुद्गल एवं परमाणु करते समय आहारक वर्गणा का प्रयोग किया जाता है। 4. तैजसवर्गणा-तैजस शरीर के निर्माण में प्रयुक्त पुद्गल वर्गणा। 5. कार्मण वर्गणा- कर्म पुद्गलों के माध्यम से कार्मण शरीर के निर्माण में प्रयुक्त वर्गणा। 6. श्वासोच्छ्वासवर्गणा- जीवों के द्वारा श्वासोच्छ्वास में प्रयुक्त वर्गणा। 7. भाषावर्गणा- भाषा बोलने में प्रयुक्त वर्गणा। 8. मनोवर्गणा-मन के निर्माण एवं चिन्तन प्रक्रिया में प्रयुक्त पुद्गल वर्गणा। ये सभी वर्गणाएँ सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। एक वर्गणा के पुद्गल दूसरी वर्गणा के पुद्गलों में भी परिवर्तित हो सकते हैं। प्रायः ये वर्गणाएँ अपने प्राकृतिक स्वरूप में रहती हैं, जीव के द्वारा प्रयुक्त होने पर इनमें कार्य सम्पन्न होते है। ___ आठ वर्गणाओं में से औदारिक, वैक्रिय, आहारक एवं तैजस वर्गणाएँ अष्टस्पर्शी हैं, जबकि कार्मण, भाषा एवं मनोवर्गणा चतुःस्पर्शी (शीत, उष्ण, स्निग्ध एवं रुक्ष स्पर्शयुक्त) हैं। श्वासोच्छ्वास वर्गणा चतुःस्पर्शी एवं अष्टस्पर्शी दोनों प्रकार की हैं। आधुनिक विज्ञान एवं पुद्गल ___ आज हम विज्ञान के अनेक चमत्कारपूर्ण प्रयोगों से परिचित हैं । मोबाइल फोन पर बातचीत हो या इण्टरनेट पर चेटिंग, टी.वी. पर धारावाहिक का प्रसारण हो या रेडियो पर कार्यक्रमों का श्रवण- यह सब पुद्गलों का ही चमत्कार है । मोबाइल तरंगें एक मोबाइल से दूसरे मोबाइल तक सेटेलाइट के माध्यम से पहुँचती हैं, वे भी पुद्गल ही हैं। वे दृष्टिगोचर नहीं होने से सूक्ष्म पुद्गल के रूप में स्वीकार्य हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में जो चमत्कार हुए हैं वे भी पुद्गलों पर किए गए प्रयोग हैं। हृदय की शल्य चिकित्सा हो या किसी अंग का ट्रांसप्लान्टेशन - सारे प्रयोग पुद्गलों पर आश्रित हैं। आधुनिक विज्ञान में जितनी भी शोध की जा रही है, वह प्रयोग पर आश्रित है और जितने भी प्रयोग हैं, वे पौद्गलिक वस्तुओं अथवा जीव युक्त पुद्गलों पर ही संभव हैं। हम विज्ञान के कारण जितना विकास देख रहे हैं, वह पुद्गलों के प्रयोग परिणमन और मिश्र परिणमन का फल है। पटरी का निर्माण हो या ट्रेन का, कारों का
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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