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________________ 86 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन करता है या सर्व से स्पर्श करता है? उत्तर में कहा गया है कि एक परमाणु दूसरे परमाणु पुद्गल को स्पर्श करता हुआ सर्व से सर्व को स्पर्श करता है। परमाणु पुद्गल की सकम्पता एवं निष्कम्पता को लेकर भी विचार किया गया है। परमाणु पुद्गल कदाचित् सकम्प होता है और कदाचित् निष्कम्प होता है। जब वह सकम्प होता है तब सर्वसकम्प होता है, देश सकम्प नहीं होता। परमाणु पुद्गल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक निष्कम्प रहता है।' परमाणु के अतिरिक्त सूक्ष्म पुद्गल सूक्ष्म पुद्गल भी दो प्रकार के हैं- 1. अन्त्य अर्थात परमाणु एवं 2. आपेक्षिक अर्थात द्वयणुकादि । परमाणु तो सूक्ष्म हैं ही, किन्तु द्विप्रदेशी स्कन्ध, त्रिप्रदेशी स्कन्ध, चतुःप्रदेशी स्कन्ध यावत्, संख्यात, असंख्यात एवं अनन्तप्रदेशी भी ऐसे अनेक स्कन्ध हैं जो इन्द्रियों से गृहीत नहीं होते, किन्तु वे पुद्गल के लक्षणों से युक्त हैं और सूक्ष्म पुद्गल की कोटि में आते हैं। ___ परमाणु के अतिरिक्त द्युणकादि स्कन्ध भी सूक्ष्म पुद्गल होते हैं। ये इन्द्रिय ग्राह्य नहीं होते तथा दूसरी विशेषता यह है कि ये चतुःस्पर्शी होते हैं। अष्टस्पर्शी पुद्गल बादर पुद्गल कहलाते हैं, जबकि चतुःस्पर्शी पुद्गल सूक्ष्म पुद्गलों की श्रेणी में आते हैं। दो परमाणुओं वाले स्कन्ध को द्विप्रदेशी, तीन परमाणुओं वाले स्कन्ध को त्रिप्रदेशी, चार परमाणुओं वाले स्कन्ध को चतुःप्रदेशी स्कन्ध कहा जाता है। यह क्रम निरन्तर आगे बढ़ता रहता है। कोई स्कन्ध दशप्रदेशी एवं उससे अधिक, संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी या अनन्तप्रदेशी भी होता है। द्विप्रदेशी स्कन्ध में एक या दो वर्ण, एक या दो गन्ध, एक या दो रस तथा दो, तीन या चार स्पर्श होते हैं। दो स्पर्श हों तो कदाचित् शीत और स्निग्ध, कदाचित् शीत और रुक्ष, कदाचित् उष्ण और स्निग्ध, कदाचित् उष्ण और रुक्ष स्पर्श होते हैं। तीन स्पर्श होने पर सर्वशीत, एक अंश स्निग्ध और एक अंश रुक्ष होता है। स्निग्ध एवं रुक्ष के अतिरिक्त सर्व उष्ण, सर्व स्निग्ध एवं सर्वरुक्ष के भी विकल्प पाए जाते हैं। त्रिप्रदेशी स्कन्ध में वर्ण एवं रस एक से लेकर तीन तक हो सकते हैं, किन्तु स्पर्श चार से अधिक नहीं होते हैं। चतुःप्रदेशी स्कन्ध में चार वर्ण, दो गन्ध, चार रस एवं चार स्पर्श तक हो सकते हैं। चार स्पर्शों में शीत, उष्ण, स्निग्ध एवं
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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