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अष्टमोऽध्यायः
सदसद्वद्ये । वेदनोयकर्म-साता और असाता वेदनीय इस तरह दो प्रकार के हैं। (१०) दर्शनचारित्रमोहनीयकषायनोकषायवेदनीयाख्यात्रिद्विषोडशनवभेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयानि कषायनोकषायावनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरणसंज्वलनविकल्पाश्चैकशः क्रोधमानमायालोमाः हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुनपुंसकवेदाः। *
मोहनीय के-१ दर्शन मोहनीय तथा २ चारित्र मोहनीय ये दो भेद हैं. उस दर्शन मोहनीय के - १ सम्यक्त्वमोहनीय २ मिथ्यात्वमोहनीय और ३ मिश्रमोहनीय ये तीन भेद हैं। __ चारित्र मोहनीय के १ कषायवेदनीय और २ नोकषायवेदनीय ये दो भेद हैं, उस कषाय वेदनीय के-१ अनन्तानुबधो २ अप्रत्याख्यानी, ३ प्रत्याख्यानी और ४ संज्वलन ये चार भेद हैं, फिर उन चारों में से एक एक के क्रोध, मान, माया और लोभ, इस तरह चार चार भेद होने से १६ भेद होते हैं। और नो कषायमोहनीय१ हास्य, २ रति, ३ अरति, ४ शोक, ५ भय, ६ दुगंछा ७ त्रिवेद, ८ पुरुषवेद, ६ नपुंसक वेद इस तरह नौ भेद हैं।
सोला १६ कषाय ह नोकषाय और तीन दर्शन मोहनीय ये २८ भेद मोहनीय कर्म के हैं। (११) नारकर्यग्योनमानुषदैवानि ।
* इस पाठ में तथा दस में सूत्र की विशेष समझ पहले कर्मप्रन्थ से प्राप्त कर लेनी।