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सप्तमोऽध्यायः
७६ भरना) और अन्न पान निरोध ( खाने पीने का विछोह पाडना); ये पाँच अहिंसा व्रत के अतिचार हैं। (२१) मिथ्योपदेशरहस्याभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्या
सापहारसाकारमन्त्रभेदाः। मिथ्या उपदेश ( जूठी सलाह ) । रहस्याभ्याख्यान (स्त्री पुरुष के गुप्त भेद प्रगट करने ) कूटलेखक्रिया (खोटे दस्तावेज करने )। न्यासापहार ( थापण ओलवनी ) और साकार मंत्र भेद (चाडी-चुगली करनी, गुप्त बात कह देनी ); ये दूसरे व्रत के अतिचार हैं। (२२) स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधि
कमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः। __ स्तेन प्रयोग ( चोर को मदद देनी उसके काम को उत्तेजना देनी ) तदाहृतादान ( उसकी लाई हुई चीज थोड़ी कीमत में खरीदनी) विरुद्धराज्यातिक्रम ( राज्य विरुद्ध काम करना-राजा के मना किये हुवे देश में जाना) हीनाधिक मानोन्मान ( तोल माप में कमती-ज्यादा देना लेना) और प्रतिरूपक व्यवहार ( अच्छी. बुरी वस्तु का भेल मेल का ना ) ये अस्तेय व्रत के अतिचार हैं। (२३) परविवाहकरणेत्वरपरिगृहितापरिगृहीतागमनानङ्ग
क्रीडातीवकामाभिनिवेशाः। पर-विवाहकरण ( दूसरों के विवाह कराने ), इत्वरपरिगृहितागमन (थोड़े काल के लिये किसी को स्त्री करके रक्खी हुई स्त्री के साथ संग करना ), अपरिगृहितागमन ( वगेर परणीवैश्या वगेरा स्त्री के साथ संग करना ) अनंग क्रीडा ( नियम विरुद्ध अंगों से क्रीडा करनी ) और तीव्र कामाभिनिवेश ( काम से अत्यन्त विह्वल होना ), ये पांच ब्रह्मचर्य व्रत के अतिचार हैं।