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जी म० के प्रथम शिष्य मुनिराज श्री अमृतसागरजी म० के आकस्मिक कालधर्म के कारण उन पुण्यात्मा की स्मृति निमित्त 'श्री जैन- अमृतसाहित्य-प्रचार समिति' की स्थापना उदयपुर में हुई थी। जिसका लक्ष्य था विशिष्ट ग्रन्थों को हिन्दी में रूपांतरित करके बालजीवों के हितार्थ प्रस्तुत किये जाय । तदनुसार श्राद्ध विधि ( हिंदी ), त्रिषष्टीय देशना संग्रह (हिंदी) एवं धर्मरत्नप्रकरण ( हिंदी ) का प्रकाशन हुआ था, और प्रस्तुत ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद मुद्रण योग्य पुस्तिका के रूप में रह गया था । उसे पूज्य गच्छाधिपति श्री की कृपा से संशोधित कर पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा रहा है । इसे पढ़कर पाठकगण सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति करें ।
- संशोधक