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पञ्चमोऽध्यायः (३) नित्यावस्थितान्यरूपाणि । - ये द्रव्य नित्य ( अपने स्वरूप में हमेंशा रहें वे) अवस्थित ( संख्या में न्यूनाधिक नहीं ) और अरूपी है. (४)
रूपिणः पुद्गलाः । पुद्गल रूपी-मूर्त है. (५)
आऽऽकाशादेकद्रव्याणि । धर्मास्तिकाय से लगाकर भाकाश तक द्रव्य एक एक हैं. (६)
निष्क्रियाणि च । - ये पूर्वोक्त तीन द्रव्य निष्क्रिय ( क्रिया रहित ) है. (७) असंख्येयाः प्रदेशा धर्माऽधर्मयोः। ___ धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के प्रदेश असंख्येय हैं. (८)
जीवस्य च । एक जीव के प्रदेश भी असंख्यात है. (९)
आकाशस्यानन्ताः। लोकालोक के भाकाश के प्रदेश अनन्त है लेकिन लोकाकाश के असंख्येय प्रदेश हैं. (१०) संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ।
पुद्गलों के प्रदेश संख्येय; असंख्येय मौर अनन्त होते हैं. (११)
नाणोः। परमाणु के प्रदेश नहीं होते. (१२)
लोकाकाशेऽवगाहः। लोकाकाश में अवगाह (जगह) होती है यानी रहने वाले द्रव्य की स्थिति (रहना) लोकालाश में होती है (अत्रमाही द्रव्यों की स्थिति लोकाकाश में हैं)