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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् भाग देने से वाटला क्षेत्र का विष्कम्भ भाता है। उत्तर क्षेत्र के धनु:काष्ठ में से दक्षिण क्षेत्र के धनु:काष्ठ को बाद करने से जो बाकी रहे, उसका आधा करने से जो आवे वह बाहु (बाहा) जानना.
इस करण रूप उपाय से सब क्षेत्र और पर्वतों की लंबाई, पहोलाई ज्या, इषु. धनुःकाष्ठ वगेरा के प्रमाण जाण लेने. (१२)
द्विर्धातकी-खण्डे । वे क्षेत्र तथा पर्वत धातकी खण्ड में दूणे हैं.
जितने मेरु, क्षेत्र और पर्वत जम्बूद्वीप में हैं उनसे दूणे धातकीखण्ड में उत्तर-दक्षिण लम्बे दो इषुकार पर्वतों से बटे हुवे हैं य नी पूर्व-पश्चिम के दोनों भाग में जम्बूद्वीप की तरह क्षेत्र पर्वत के हिस्से है.
पर्वत पैंडे के मारे माफिक और क्षेत्र पारे के विवर माफिक आकार वाले हैं यानी पर्वत की पोहलाई सब जगह एकसा है और क्षेत्र की पोहलाई सिलसिले वार बढ़ती हुई है. (१३)
पुष्कराधे च । पुष्करार्ध द्वीप में भी क्षेत्र पर्वत, धातकीखण्ड के जितने हैं. धातकीखण्ड में मेरु, इषुकार पर्वत, क्षेत्र और वर्षधर पर्वत जितने और जिस रीती के हैं उतने और वैसे आकार के यहाँ भी जानना.
पुष्कराध द्वीप के अन्त में उत्तम किल्ले जैसा सुवर्णमय मानुषोत्तर पर्वत, मनुष्य लोक को घेरे हुवे गोल है वह १७२१ योजन ऊँचा है. चार सो तीस योजन और एक गाऊ जमीन में फेला हुवा है.