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तृतीयोऽध्यायः
एक एक से अधिकतर वेदना समझनी ।
उनाले की प्रचंड धूप पड़ती हो उस वक्त दुपहर में चारों तरफ मोटी धग धगाती अग्नी की धूणी कर बीच में पित्त की व्याधी(बिमारी) बाले मनुष्य को चिठलाया हो उसको अग्नी का जेसा दुःख लगे उससे नारक कों अनन्त गुण दुःख उष्ण वेदना का होता है। पौष, माघ मास की ठंडी रात को झाकल पड़ता हो और ठडी हवा चलती हो उस वक्त अग्नि और वस्त्र की सहाय (मदद) न हो ऐसे मनुष्य को जैसा ठंड का दुःख हो उससे नारकों को अनन्त गुणा दुःख शीत वेदना का होता है।
उन उष्ण वेदना वाले नारकों को वहाँ से लाकर यहाँ अत्यन्त बड़े अग्नि के कुड में डाला हो तो वे ठंडी छाया में सोते हो उस तरह आनन्द से निद्रा ले । और शीत वेदना बाले नारक को यहाँ से लाकर यहाँ माघ मास की रात्री में झाकल में रक्खे तो वह अत्यन्त आनन्द से निद्रा ले। इस नारकी जीवों को भारी दुःख है । उनको घिक्रिया (वैक्रिय शरीर आदि बनाना ) भी शुभतर हैं। अच्छा करूँगा ऐसी इच्छा करते हुधे अशुभ विक्रिया होती है दुःख प्रस्त मनवाली दुःख का प्रतिकार (मिटाने का उपाय ) करना चाहते है तो लेकिन उल्टा महान दुःख उत्पन्न होता है ।
. [४] परस्परोदीरितदुःखाः । इन नरकों में जीवों को आपस में उदीरणा किया हुषा दुःख है। यानी ये जीव अन्यो अन्य एक दूसरे को दुःख देते हैं । उनकी अवधि ज्ञान या विभंग ज्ञान होने से वे दूसरे ही सब दिशाओं से भाते हुवे दुःख के हेतुओं को देखते हैं। __ बहुत दुश्मनी वाले जीवों की तरह वे आपस में लड़ते हैं और दुःखी होते हैं।