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द्वितीयोऽध्यायः
२ अनाकार-दर्शन (चक्षु आदि) चार प्रकार का है।
जीव के भेद
(१०) संसारिणो मुक्ताश्च। संसारी और मुक्त (मोक्ष के ) इन दो भेदों के जीव हैं। फिर दूसरी तरह जीव के भेद कहते हैं
(११) समनस्काऽमनस्काः । मन सहित (संज्ञी) और मन रहित (मसंज्ञी) ये भेद जीव के होते हैं।
(१२) संसारिणस्त्रसस्थावराः । त्रस और स्थावर इन दो भेदों के संसारी जीव हैं।
(१३) पृथिव्यब्वनस्पतयः स्थावराः। पृथ्वी काय, अपकाय और वनस्पतिकाय, ये स्थावर हैं।
(१४) तेजोवायू द्वीन्द्रियादयश्च त्रसाः। तेउकाय, वाउकाय ये दो, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय तथा पञ्चन्द्रिय ये त्रस जीव हैं।
तेउकाय तथा वाउकाय स्वतन्त्र गति वाले होने से गति त्रस कहलाते हैं। द्वीन्द्रिय वगेरा सुख-दुःख की इच्छा से गति पाले होने से लब्धि त्रस कहलाते हैं।
इन्द्रिये गिनाते हैं(१५) पञ्चेन्द्रियाणि ।