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॥ ॐ अहम् ॥ आगमोद्धारक-आचार्यश्रीआनन्दसागर सूरीश्वरेभ्यो नमः . ॥ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ॥
प्रथमोऽध्यायः (१) सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित्राणि मोक्षमार्गः । (१) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, और सम्यक चारित्र ये मोक्षमार्ग हैं । ये तीनों इकट्ठे हों तब मोक्ष के साधन हैं, इसमें से कोई भी एक न हो तो वे मोक्ष के साधन नहीं हो सकते । इनमें से पहले की प्राप्ति होने पर पिछले की प्राप्ति हो या न हो लेकिन पिछले की प्राप्ति हो जाने पर पहले की प्राप्ति निश्चय हो, ( यानी दर्शन हो तो ज्ञान चारित्र हो या न हो, ज्ञान हो तो चारित्र हो या न हो, लेकिन चारित्र हो तो दर्शन ज्ञान जरूर होता है और ज्ञान हो तो दर्शन जरूर होता है ) सब इन्द्रियों और अनिद्रियों के विषय की भलीप्रकार से प्राप्ति वह सम्यग्दर्शन, प्रशस्तदर्शन वह सम्यगदर्शन, युक्तियुक्तदशन वह सम्यग्दर्शन ।।
(२) तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् । तत्वभूतपदार्थों की या तत्त्व से अर्थ ( जीव व अजीवादि ' पदार्थों) की श्रद्धा वह सम्यग दर्शन जानना, शम (१), संवेग (२), निर्वेद (३), अनुकम्पा (४) और आस्तिक्य (५) ये पांच लक्षण जिसमे हों उसको सम्यगदर्शनी जानना।