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तत्त्वार्थसूत्रमोहलपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः॥४५॥ पुलाकवकुशकुशीलनिम्रन्थस्नातका निम्रन्थाः॥४६॥ संयमश्नुतप्रतिसेकरै शब्दतै शब्दविचार । और योग” योगनिहार ॥ यही संक्रमन जानो वीर । टीका सूत्र लखौ मन धीर ॥५२॥
छंद विजया। मियादृष्टीते सम्यक्ती लख तातें सु देशव्रतीकें कही है। संयमी सकल महा सुव्रती तातें अनंतवियोज कही है ॥ तातें दर्शनमोह खिपावत तातें उपशम समिकितधारी ॥ इन” लख उपशांतिमोहके एकादश गुणथान विहारी ॥५३॥ तिनतें क्षपक सु श्रेणिके धारक इनतें क्षीन सु मोह कहै हैं । इनतें लख जिनकेवलिके दशथान सु कर्म जे निर्जर हैं हैं। निर्जरा होत असंख्यात गुणी गुणश्रेणी रूप समय प्रति जानो। ताको क्रम सूत्र कहो ताभांति सुटीका देख या भांति बखानो॥
चौपाई। सम्यकदर्शनधारी मुनी । पांच प्रकार संज्ञा तिन भनी । परिग्रह रहित कहे निरग्रंथ । तिनके सुनो भेद अरु पंथ ॥