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तस्वार्थ सूत्र
र्शनचारित्रोपचाराः ॥ २३ ॥ आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष्यग्लानगणकुलसङ्घसाधुमनोज्ञानाम् ॥ २४ ॥ वाचनापृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः ॥ २५ ॥ बाह्याभ्य
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सामायिक में दुष्कृत होय । करै शुद्ध प्रतिक्रमण सु जोय ||२५|| आलोचनं प्रतिक्रमन सु दोय । तदुभय नाम कहावै सोय ॥ हेयाय विचार सु होय । ताको नाम विवेक सु जोय ॥ २६ ॥ मनबचकाय त्याग व्युत्सर्ग। बारह विध तप जान निसर्ग ॥ उपवाशादि करण है छेद ! संघत्याग परिहार सु भेद ॥ २७ ॥ इस्थापन दृढ़ता है धर्म । नौ विध कहो प्रायश्चित मर्म ॥ देश ज्ञान चारित आचार । इनको विनय शुद्ध मनधार ||२२|| व्रत आचर्न करे आचार | पढ़ें पढ़ावै पाठक सार || उपवाशादि सुं तप है जान | शैक्ष शास्त्र अभ्यास करान ||२९|| रोगादिक पीडित सु गिलान । मुनिसमूह सोई गण मान ॥ शिष्यसमूह दीक्षित आचार । सोई कुलको अर्थ निहार ॥३०॥ मुनि यति ऋषि अरु साधू चार । येही संघ चार परकार । चिरदीक्षित सो साधु बखान | अरु मनोज्ञ माननिय मान ॥ ३१ ॥ ब शास्त्र करें व्याख्यान । बाचना नाम तासुको जान ||