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भाषा छंद सहित। श्रुतसङ्घधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य ॥ १३ ॥ कपायोदयात्तीव्रपरिणामश्चारित्रमोहस्य ॥ १४॥ बहारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः ॥ १५॥ माया तैर्यग्योनस्य ॥ १६ ॥ अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य ॥१७॥ खभावमार्दवं च ॥ १८॥ निःशीलव्रतत्वं च सर्वेषाम् ॥१९॥ सरागसंयमसंयमासंयमाऽकाम निर्जराबालतपांसि देवस्य ॥ २० ॥ सम्यक्त्वं च ॥ २१ ॥ योगवक्रताइह विध साताको बन्ध लखौ यह आश्रव बन्धकी जान सुशोभा। केवलज्ञानी अरु शास्त्र सुसंगति धर्म सु देवकी निंद करें हैं। दर्शनमोहनीकर्मको आश्रव होते सदा नर नाहिं डरै है ॥१०॥ कषायोदय परिनाम तीव्रतें चारितमोहनी कर्म बँधे है। बहु आरम्भ परिग्रह कारन नर्कके आश्रव फंद फसे है ॥ माया स्वभाव तिर्यचगती अरु अल्प परिग्रह मानुष जानौ । अल्पारम्भ रु कोमलभाव यहै सब आश्रव मानुष मानौ ॥१९ वैत शील रहित्यपनों सु लखौ गति सवको आश्रव होयसु वीरा। सैराग मुनी अरु आश्रवके व्रत जान अकाम सु निर्जर धीरा। तप अज्ञान रु सम्यक हू लख देवगतीको आस्रव नीरा ।
१३ संगति = सथ ।