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तस्वार्थसूत्रप्रदीपवत् ॥ १६॥ गतिस्थित्युपग्रहो धर्माधर्मयोरुपकारः॥१७॥ आकाशस्यावगाहः॥ १८॥ शरीरवा अनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् ॥१९॥ सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च ॥२०॥ परस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥२१॥ वर्त्तनापरिणामक्रियाः परत्वापरत्वे च कालस्य ॥२२॥ स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः॥२३॥ शब्दबन्धसोक्षम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायाऽऽतपोद्योतवन्त श्च ॥२४॥ अणवः स्कन्धाश्च ॥२५॥ भेदसङ्घातेभ्य जियप्रदेश संकुच विस्तार ।दीपक तुल्य जान निरधार॥५॥ पुदगल जीव चाल सहकार । धर्मद्रव्य जानो उपकार ॥ तिनको इस्थित करै सु जान । द्रव्य अधर्म स्वभाव बखान ॥६॥ गुंण अकाश अवगाहन वीर।पुर्दगल जोग सुनो मन धीर॥ मन बच स्वास उस्वास शरीर । सुख दुख जीवन मरन अधीर ॥७॥ जियउपकार परस्पर जीव । कोले सु लक्षण जान सदीव ॥ वर्तमान परिनमन सु जान । क्रिया परत्व अपरत्व बखान ॥८॥ पुदगल लक्षण सपरस गंध । वरन और रस शैब्द सु बन्ध ॥ सूक्षम थूल भेद संस्थान । तम छाया आतप पहिचान ॥९॥