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સુષ્ટિવાદ અને ઈશ્વર
आप यह तर्क नहीं बधार सकते-यदि ईश्वर नहीं है, तो संसार को बनाता कौन है ? क्या हर एक चीज के लिये बनानेवाला बहुत जरूरी है ? यदि है, तो ईश्वर का बनानेवाला कौन है ? यदि वह स्वयंभू है, तो वही बात प्रकृति के बारे में भी क्यों नहीं मान लेते ?
एक ईश्वर माननेवाले धर्मों की अपेक्षा अनेक देवता माननेवाले धर्म हजार गुना उदार रहे हैं। उनके ईश्वरों की संख्या अपरिमित होने से वहाँ औरों के देवताओं का भी समावेश आसानी से हो सकता था। किन्तु एक ईश्वरवादी वैसा करके अपने अकेले ईश्वर की हस्तीको खतरे में नहीं डाल सकते थे। आप दुनिया के एक ईश्वरवादी धर्मों के पिछले दो हजार वर्षों के इतिहास को उठाकर देख डालिये, मालूम होगा कि वह सभ्यता, कला, विद्या, विचारस्वातंत्र्य और स्वयं मनुष्य के प्राणों के भी सबसे बडे शत्रु थे। उन्हों ने हजारों बड़े बड़े पुस्तकालय और करोडों पुस्तकें आग में डाल दीं । सौन्दर्य और कोमल भावों के साकार रूप, कितने ही कलाकारों की सुन्दर मूर्तियाँ चित्रों और इमारतों को नष्ट कर दिया। हजारों विद्याव्यसनियों और विद्वानों के जीवन को समाप्त कर, स्वतंत्र विचारों का गला घोंटा। मनुष्य की मानसिक प्रगति को कम से कम एक हजार वर्ष के लिये उन्हों ने रोक ही नहीं रक्खा, बल्कि पहिले की प्राप्त सफलताओं के प्रभाव को बहुत कुछ नष्ट कर डाला। और करोडों निर्दोष नर-नारियों और बच्चों की हत्या ? यह तो उनके अपने धर्मप्रचार का एक प्रधान साधन थी। वह जिस जिस देश में गये, आग और तलवार ले कर गये। पहले तो इनके फन्दे में फंसी जातियां अफिमके नशे में थीं,