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जन्म और मृत्यु के समय व्यक्ति को भयंकर - कष्ट होता है, दुःख होता है, उस दु:ख के कारण व्यक्ति को पूर्वजन्म की स्मृति नहीं होती। प्रायः हम देखते हैं, इस जन्म में भी आकस्मिक कोई दुर्घटना हो जाने पर व्यक्ति की याददाश्त खो जाती है। जन्म और मृत्यु के समय शरीर की एक-एक कोशिका में एकमेक हुआ प्राण जब उससे अलग होता है तब उसे अलग होने में भयंकर वेदना होती है, जिससे व्यक्ति मूर्छा में भी चला जाता है अतः उसे पूर्वजन्म की स्मृति नहीं होती।
दूसरा समाधान यह है कि स्मृति का संबंध दिमाग से है, मस्तिष्क से है। मृत्यु के समय व्यक्ति का मस्तिष्क नष्ट हो जाता है अतः सबको समान स्मृति नहीं होती।
जैन दर्शन के अनुसार पूर्वजन्म के संस्कार कार्मण शरीर के साथ रहते हैं पर वे संस्कार कोई प्रबल निमित्त मिलने पर ही जागृत होते हैं। सभी को वैसे निमित्त नहीं मिल पाते अतः सभी को पूर्वजन्म की स्मृति नहीं होती।
मृत्यु के समय आत्मा एक शरीर से निकलकर दूसरे शरीर में प्रवेश करती हुई भी इसलिए नहीं दिखाई देती, क्योंकि वह अमूर्त है। अमूर्त आत्मा को आंखों से या किसी उपकरण से देख पाना असंभव है। आत्मा के साथ जो कार्मण शरीर है, वह भी इतना सूक्ष्म है कि उसे भी शरीर में प्रवेश करते हुए और बाहर निकलते हुए नहीं देख सकते।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि आत्मा का अस्तित्व त्रैकालिक है। पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के द्वारा वह विविध रूपों को धारण करती है। जब तक आत्मा के साथ सूक्ष्म शरीर रहता है तब तक वह जन्म-मरण की परम्परा से मुक्त नहीं हो सकती। पुनर्जन्म का मूल कारक तत्त्व-कर्म है। जीव जब सर्वथा कर्ममुक्त हो जाता