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3. जरायुज-वे त्रस जीव, जो अपने जन्म के समय मांस की झिल्ली में लिपटे रहते हैं, जैसे-मनुष्य, गाय, भैंस आदि।
4. रसज-वे त्रस जीव जो दही आदि रसों में उत्पन्न होते हैं, जैसे-कृमि आदि।
5. स्वेदज-वे त्रस जीव, जो पसीने से उत्पन्न होते हैं, जैसे-जूं, लीख आदि।
6. सम्मूर्छिम-वे त्रस जीव, जो नर-मादा के संयोग के बिना ही उत्पन्न होते हैं, जैसे-मक्खी , चींटी आदि।
7. उद्भिज-वे त्रस जीव, जो पृथ्वी को फोड़कर निकलते हैं, जैसे-टिड्डी , पतंगा आदि।
8. औपपातिक-वे त्रस जीव, जो गर्भ में रहे बिना ही स्थान विशेष में पैदा होते हैं, जैसे-देव, नारक आदि। इन्द्रिय की अपेक्षा से आत्मा के भेद
आत्मा का लिंग इन्द्रिय है। जैन दर्शन में स्पर्शन (त्वचा), रसन (जीभ), घ्राण (नाक), चक्षु (आँख) और श्रोत्र (कान)-ये पांच इन्द्रियां मानी गई हैं, अतः इन्द्रियों की अपेक्षा से संसारी आत्मा के पांच भेद हो जाते हैं
1. एकेन्द्रिय आत्मा-जिनमें केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय होती है, उन्हें एकेन्द्रिय जीव कहते हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु . और वनस्पति के भेद से एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के होते हैं। - 2. द्वीन्द्रिय आत्मा-जिनमें स्पर्शन और रसन-ये दो इन्द्रियाँ होती हैं, उन्हें द्वीन्द्रिय जीव कहते हैं। कृमि, लट, शंख आदि दो . इन्द्रिय वाले जीव हैं।
____3. त्रीन्द्रिय आत्मा-जिनमें स्पर्शन, रसन और घ्राण-ये तीन इन्द्रियाँ होती हैं, उन्हें त्रीन्द्रिय जीव कहते हैं। चींटी, मकोड़ा, जूं, खटमल आदि तीन इन्द्रिय वाले जीव हैं।