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2. अधर्मास्तिकाय-जीव और पुद्गल की स्थिति में उदासीन भाव से सहायक द्रव्य।
3. आकाशास्तिकाय-सभी द्रव्यों को आश्रय देने वाला द्रव्य। 4. काल-द्रव्यों के परिणमन में सहायक द्रव्य। 5. पुद्गलास्तिकाय-स्पर्श, रस, गंध, वर्ण से युक्त द्रव्य। 6. जीवास्तिकाय-चैतन्य से युक्त द्रव्य। .
इनका विस्तृत विवेचन षड्द्रव्य के अन्तर्गत किया जा चुका है। इस प्रकार लोक वह है, जहाँ पर छहों द्रव्य की सहस्थिति-सहावस्थान है। इसके विपरीत अलोक वह है, जहाँ छहों द्रव्यं नहीं, केवल आकाश द्रव्य है। अलोक असीम है और लोक ससीम है। ससीम होते हुए भी लोक बहुत विस्तृत है, तथापि अलोक की अपेक्षा बहुत छोटा है। दृष्टान्त की भाषा में अलोक एक कपड़े का थान है तो लोक उसके एक छिद्र के समान है। . लोक-अलोक का विभाजक तत्त्व
लोक और अलोक का स्वरूप समझने के बाद प्रश्न होता है लोक और अलोक का विभाजक तत्त्व क्या है? लोक और अलोक का विभाजन शाश्वत है, अतः इसका विभाजक तत्त्व भी शाश्वत होना चाहिए। इन छह द्रव्यों के अतिरिक्त और कोई शाश्वत पदार्थ. नहीं है इसलिए इन्हीं में से कोई विभाजक तत्त्व होना चाहिए। आकाश विभाजक तत्त्व नहीं बन सकता, क्योंकि वह स्वयं विभज्यमान है। काल तत्त्व भी विभाजन का हेतु नहीं बन सकता क्योंकि व्यावहारिक काल मनुष्य-लोक के सिवाय अन्य लोकों में नहीं होता और नैश्चयिक काल लोक-अलोक दोनों में मिलता है, क्योंकि वह जीव और अजीव की पर्याय मात्र है। काल वास्तविक द्रव्य भी नहीं है। जीव और पुद्गल गतिशील और मध्यम परिमाण वाले तत्त्व हैं जबकि लोक-अलोक की सीमा-निर्धारण के लिए कोई स्थिर
लोक और अशाश्वत है, अतः अतिरिक्त औ