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पुद्गल का स्वरूप
द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की दृष्टि से पुद्गल को इस प्रकार समझा जा सकता है
द्रव्य की दृष्टि से-पुद्गल अनन्त हैं। क्षेत्र की दृष्टि से-पुद्गल सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। काल की दृष्टि से-पुद्गल अनादि-अनन्त हैं। भाव की दृष्टि से-पुद्गल मूर्त हैं।
गुण की दृष्टि से-पुद्गल गलन-मिलन स्वभाव वाले हैं। 6. जीवास्तिकाय
जिसमें चेतना होती है, उसे जीव कहते हैं। जीवास्तिकाय से तात्पर्य सम्पूर्ण जीवों के समूह से है। द्रव्य-संग्रह में जीव के स्वरूप को बतलाते हुए कहा गया है-जीव (आत्मा) उपयोगमय है, अमूर्त है, कर्ता है, देह परिमाण है, भोक्ता है, संसार में स्थित है, सिद्ध है और स्वभाव से ऊर्ध्वगमन करने वाला है। जीव का स्वरूप
द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की दृष्टि से जीव का स्वरूप इस प्रकार समझा जा सकता है
'द्रव्य की दृष्टि से-जीव अनन्त हैं।
क्षेत्र की दृष्टि से-जीव सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। काल की दृष्टि से-जीव अनादि-अनन्त हैं। भाव की दृष्टि से-जीव अमूर्त, अभौतिक, चैतन्ययुक्त है। गुण की दृष्टि से-जीव चैतन्य स्वरूप, ज्ञान-दर्शन युक्त है।
द्रव्य से जीव अनन्त हैं। इसका तात्पर्य है कि वे धर्मास्तिकाय आदि की तरह असंख्येय प्रदेशात्मक एक ही अविभाज्य पिण्ड नहीं