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लेना पड़ता है। किन्तु जब व्यक्ति अपनी हर समस्या का समाधान हिंसा से करने का प्रयास करता है तो समाज में अनैतिकता, भ्रष्टाचार
और आतंकवाद जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं। परिणामस्वरूप समाज स्वस्थ नहीं अपितु रुग्ण बनता है। स्वस्थ समाज संरचना के लिए आवश्यक है इस आस्था का निर्माण करना कि हिंसा समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। स्थायी समाधान है-अहिंसा। सामाजिक आदमी पूर्ण अहिंसक नहीं बन सकता पर उनकी आस्था अहिंसा में हो यह आवश्यक है। समाज में जितना-जितना अहिंसा का विकास होगा, मैत्री-प्रेम, भाईचारे की भावना का भी उतना ही विकास होगा और स्वस्थ समाज की परिकल्पना साकार होगी। 2. मानवीय एकता में विश्वास
स्वस्थ समाज संरचना का दूसरा सूत्र है-मानवीय एकता में विश्वास। भूगोल और इतिहास की दृष्टि से देखें तो आज मानव-समाज कई भागों में बंटा हुआ है। एक ही धरती पर कई राष्ट्रों की सीमाएँ खड़ी हैं। भविष्य में भी इस भेद को मिटाया जा सके, संभव नहीं लगता। फिर भी मानवीय एकता में यदि विश्वास किया जाए तो भावात्मक दूरियों को समाप्त किया जा सकता है। वर्ण, जाति, रंग के आधार पर घृणा और अहंकार का जो भाव विकसित हो रहा है, उसे दूर किया जा सकता है। अतः मानवीय एकता में विश्वास स्वस्थ समाज संरचना का एक महत्त्वपूर्ण पहलू
3. दूसरों के श्रम का अशोषण
जिस समाज में दूसरों के श्रम का सम्मान नहीं होता, मूल्यांकन नहीं होता अपितु शोषण होता है, वह समाज स्वस्थ नहीं रह सकता। समाज-रचना के बारे में एक मान्यता मात्स्य न्याय की रही है। उसके अनुसार बड़ी मछली हमेशा छोटी मछली को निगलकर ही अपना