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है कि इससे नैतिकता का नया आयाम खुलेमा। प्रथम आह्वान में ही. इकहत्तर (71) व्यक्ति अणुव्रती बने। प्रथम बार अणुव्रती बनने वालों के नाम उन्होंने स्वयं अपने हाथ से लिखे। अणुव्रत असाम्प्रदायिक धर्म है .
प्रत्येक धर्म के साथ सम्प्रदाय जुड़ा हुआ है। अणुव्रत का किसी सम्प्रदाय के साथ संबंध नहीं है। यह एक ऐसे धर्म की परिकल्पना है, जो धर्म हो, किन्तु सम्प्रदाय से जुड़ा न हो। अणुव्रत का संबंध नैतिकता से है। नैतिकता. साम्प्रदायिक नहीं है। वह सबके लिए समान रूप से समादरणीय है।
अणुव्रत असाम्प्रदायिक धर्म है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, अनेक सम्प्रदाय के लोगों द्वारा अणुव्रत की स्वीकृति। इस आन्दोलन में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई सभी सम्मिलित हुए और उन्हें यह प्रतीत हुआ कि इसमें हमारे सम्प्रदाय अथवा धर्म से कोई विरुद्ध बात नहीं है। एक मुसलमान भाई ने आचार्य तुलसी से पूछा-मैं अणुव्रत की आचार-संहिता स्वीकार करूं तो क्या नमाज पढ़ सकता हूँ। आचार्य तुलसी ने कहा-उपासना में आप स्वतंत्र हैं, उससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है। आपकी प्रतिबद्धता नैतिकता की आचार-संहिता के साथ है, किसी सम्प्रदाय के साथ नहीं है। अपने-अपने देव-गुरुधर्म के प्रति आस्था रखते हुए व्यक्ति अणुव्रती बन सकता है। इसमें जाति, धर्म, रंग, स्त्री, पुरुष आदि का कोई विचार नहीं किया जाता है। जो भी एक इच्छा इन्सान और मानव बनना चाहता है, वह इसे स्वीकार कर सकता है। लाखों लोगों ने इसे स्वीकार किया। अणुव्रत : नैतिकता का आन्दोलन है
धर्म और नैतिकता का परस्पर संबंध है, किन्तु लगता है आज नैतिकता विहीन धर्म को मान्यता मिल गई है। इसीलिए धार्मिक व्यक्ति