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है, किन्तु इसके पारिभाषिक अर्थ निषेधात्मक और विधेयात्मक दोनों हैं अतः निषेधात्मक और विधेयात्मक के भेद से अहिंसा के दो प्रकार हो जाते हैं। निषेधात्मक अहिंसा
राग-द्वेषात्मक प्रवृत्ति नहीं करना, प्राण-वध नहीं करना या प्रवृत्ति मात्र का निरोध करना निषेधात्मक अहिंसा है। .
जैन दर्शन के अनुसार तीन योग (मन, वचन, काय) और तीन करण (करना, कराना, अनुमोदन करना) से हिंसा न करना ही पूर्ण अहिंसा है। इन तीन योग और तीन करण के संयोग से अहिंसा के नौ प्रकार बन जाते हैं, जो इस प्रकार हैं
1. मन से हिंसा न करना।
2. मन से हिंसा न करवाना। ___ 3. मन से हिंसा का अनुमोदन न करना। . . .
4. वचन से हिंसा न करना। . 5. वचन से हिंसा न करवाना। 6. वचन से हिंसा का अनुमोदन न करना। 7. काय से हिंसा न करना। 8. काय से हिंसा न करवाना। 9. काय से हिंसा का अनुमोदन न करना।
इन नौ प्रकारों से किसी भी प्राणी का घात न करना अहिंसा है। यह अहिंसा का निषेधात्मक स्वरूप है। अहिंसा का यह निषेधात्मक स्वरूप ही अधिक प्रचलित है किन्तु अहिंसा का विधेयात्मक रूप भी है। विधेयात्मक अहिंसा
सत्प्रवृत्ति करना, स्वाध्याय करना, दान करना, ज्ञान-चर्चा