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इस प्रकार मन में हिंसा के भाव आना भावहिंसा है तथा भावहिंसा के परिणामस्वरूप जो भी घटनाएँ घटती हैं, वे द्रव्यहिंसा की कोटि में आती हैं।
जैन दर्शन में भावहिंसा और द्रव्यहिंसा को लेकर हिंसा के चार विकल्प किये गए हैं
1. भावहिंसा और द्रव्यहिंसा दोनों। 2. भावहिंसा पर द्रव्यहिंसा नहीं। 3. भावहिंसा नहीं पर द्रव्यहिंसा। 4. न भावहिंसा और न द्रव्यहिंसा।
इन चारों विकल्पों को उदाहरण से समझ सकते हैं। पहले विकल्प का उदाहरण-जैसे कोई व्यक्ति सर्प को मारने के उद्देश्य से डंडा लेता है और सर्प को मार डालता है। यहाँ सर्प को मारने का उद्देश्य भावहिंसा और सर्प को मार डालना द्रव्यहिंसा है।
यदि किसी व्यक्ति ने सर्प को मारने के उद्देश्य से डंडा उठाया पर सर्प भाग गया, सर्प का प्राणघात वह नहीं कर पाया। यहां भावहिंसा है पर द्रव्यहिंसा नहीं।
यदि कोई व्यक्ति कटे हुए धान के पौधों को पीट रहा है और संयोगवश उसके पीटने से पौधों के नीचे बैठा हुआ सर्प अनजाने में चोट खाकर मर जाए तो वहां पर भावहिंसा नहीं पर द्रव्यहिंसा है। क्योंकि धान पीटने वाले व्यक्ति के मन में सर्प को मारने की कोई भावना नहीं थी।
यदि कोई व्यक्ति सर्प को देखकर यह सोचता है कि यह भी एक प्राणी है अतः स्वच्छन्द विचरण कर रहा है। उसे न तो मारने की सोचता है और न मारता है तो यहाँ न भावहिंसा है और न द्रव्यहिंसा है।