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सेवन और आराधना करता हूँ' इस प्रकार प्रतिज्ञा ग्रहण करें। तदुपरान्त मैं अभी से सागारी या आगाररहित संथारा स्वीकार करता हूँ। चारों आहार का त्याग करता हूँ, अठारह पापस्थानों का त्याग करता हूँ।
इसके पश्चात् जो-जो नियम-व्रत ले रखे हैं, उनमें जो त्रुटियां हुई हों, उनकी आलोचना करता है। सभी से क्षमायाचना कर शुद्ध और शल्यरहित हो जाता है।
. न केवल अपने पारिवारिक जनों से अपितु अपने शरीर से भी ममत्व छोड़ देता है। संथारा स्वीकार करने का मतलब है-अपनी आत्मा के प्रति पूर्ण समर्पण, शरीर से ऊपर उठकर आत्मस्वरूप में पूर्ण तल्लीनता। संथारा स्वीकार करने वाला बाह्य पदार्थों से सर्वथा सम्बन्ध विच्छेद कर लेता है।
इस प्रकार संलेखना के पश्चात् संथारा स्वीकार किया जाता है, किन्तु यदि कोई आकस्मिक कारण आ जाता है तो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव देखते हुए संलेखना के बिना भी संथारा ग्रहण कर समाधिमरण का वरण किया जाता है। संलेखना : संथारा के अतिचार
___ बाह्य वस्तुओं से, परिवार से सम्बन्ध विच्छेद कर देने पर तथा सावधानी रखने पर भी प्रमाद या अज्ञान के कारण जिन दोषों के . लगने की संभावना रहती है, उन्हें अतिचार कहा जाता है, जैसे संथारे में कीर्ति, प्रशंसा, सम्मान, स्वर्ण प्राप्ति आदि की भावना का होना अतिचार है। साधक को इनसे बचने का प्रयास करना चाहिए।
संलेखना : संथारा के पांच अतिचार हैं
1. इहलोक-आशंसा प्रयोग-धन, परिवार आदि इस लोक सम्बन्धी किसी वस्तु की. आकांक्षा करना, लौकिक सुख प्राप्ति की इच्छा करना, इहलोक-आशंसा प्रयोग अतिचार है।