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परिस्थिति समाप्त नहीं होती तब तक क
रख सकता है। जब तक परिस्थिति समाप्त नहीं होती तब तक के लिए यह संथारा होता है। परिस्थिति विशेष में यदि उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसका मरण भी संथारापूर्वक होने से उसे समाधिमरण कहा जाता है। 2. सामान्य संथारा
जब व्यक्ति वृद्ध हो जाता है, इन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो जाती है, असाध्य रोगों के कारण जीने की कोई आशा नहीं रहती, मृत्यु सम्मुख दिखाई देती है तब व्यक्ति सामान्य संथारा ग्रहण करता है। सामान्य संथारा तीन प्रकार का होता है
1. भक्त-प्रत्याख्यान, 2. इंगिणीमरण,
3. पादोपगमन। 1. भक्त-प्रत्याख्यान - जीवन भर के लिए त्रिविध या चतुर्विध आहार का त्याग कर जो संथारा ग्रहण किया जाता है, वह भक्त प्रत्याख्यान संथारा है। आहार चार प्रकार का होता है-अशन (अनाज आदि भोजन), पान (पेय पदार्थ), खादिम (सूखे मेवे), स्वादिम (मुखवास). आदि। त्रिविध आहार का त्याग करने वाला पानी की छूट. रखता है तथा चतुर्विध आहार का त्याग करने वाला पानी भी नहीं पीता। 2. इंगिणीमरण . भक्त-प्रत्याख्यान में त्रिविध या चतुर्विध आहार का त्याग किया जाता है किन्तु इंगिणीमरण में चतुर्विध आहार का त्याग अनिवार्य है। भक्त-प्रत्याख्यान संथारा करने वाला एक स्थान से दूसरे स्थान पर, एक गांव से दूसरे गांव भी जा सकता है तथा किसी भी प्रकार की शारीरिक सेवा पारिवारिक या अन्यजनों से ले सकता है।