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परिग्रह-परिमाण व्रत का कोई औचित्य नहीं है। जैन दर्शन के अनुसार परिग्रह-परिमाण व्रत का औचित्य आज भी है। यह अनेक कारणों से मानव जाति के लिए आज भी लाभप्रद है, उनमें से कुछ कारण निम्नलिखित हैं
__ 1. परिग्रह-परिमाण व्रत व्यक्ति को संतोष और शांति प्रदान करता है।
___2. परिग्रह-परिमाण व्रत होने पर व्यक्ति हिंसा, झूठ, चोरी जैसे दोषों से बच सकता है।
3. परिग्रह-परिमाण व्रत होने पर अनैतिकता, भ्रष्टाचार, असंयम, लोभ, मिलावट, तस्करी, धोखाधड़ी आदि समस्याओं का समाधान हो सकता है।
4. परिग्रह-परिमाण व्रत करने वाला व्यक्ति निर्धन वर्ग की ईर्ष्या का पात्र बनने से बच जाता है।
5. परिग्रह-परिमाण व्रत होने पर हृदय में उदारता की भावना को बल मिलता है।
6. परिग्रह-परिमाण व्रत सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय होता है क्योंकि उसमें सम्पदा पर एकाधिपत्य की भावना का नाश हो जाता है। अपनी पूर्ति होने के पश्चात् सर्वकल्याण की भावना का विकास होता है। ___ . इस प्रकार भगवान महावीर के अपरिग्रह का विचार और आचार केवल परमार्थ-साधना का विषय नहीं, यह व्यक्तिगत जीवन में सुख और शांति के लिए तथा स्वस्थ समाज संरचना के लिए भी आवश्यक है। यह बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद और पर्यावरण प्रदूषण जैसी अनेक समस्याओं के निराकरण का एक सार्थक उपाय है। अतः व्यक्ति अपनी इच्छाओं का सीमाकरण करे तथा आवश्यक पदार्थों के प्रति भी मूर्छा-आसक्ति न रखे।