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1. इच्छा
परिग्रह का मूल इच्छा है। व्यक्ति की आवश्यकताएँ बहुत सीमित होती हैं किन्तु इच्छाएँ आकाश के समान असीम होती हैं। इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए ही व्यक्ति पदार्थ का संग्रह करता है। टॉलस्टाय ने अपनी कहानी-How much land does a man require? के माध्यम से यह बताने का प्रयत्न किया है कि व्यक्ति असीम तृष्णा के पीछे पागल होकर जीवन की बाजी लगा देता है किन्तु अन्त में उसके शव को दफनाने भर के लिए ही भू-भाग उसके उपयोग में आता है। व्यक्ति की इच्छाएँ असीम हैं। एक इच्छा पूरी होते ही तत्काल उससे भिन्न अन्य वस्तु पाने की इच्छा जाग जाती है। इस प्रकार इच्छाओं का क्रम चलता रहता है। प्रत्येक व्यक्ति के इच्छा का गड्ढा इतना बड़ा होता है कि उसको भरने के लिए सारे संसार के समस्त पदार्थ भी थोड़े होते हैं। इसलिए कहा है-Desire is burning fire, he who falls into itneverrises again. इच्छा जलती हुई आग है, उसमें गिरा व्यक्ति कभी नहीं उठता। 2. लोभ
परिग्रह का दूसरा कारण लोभ है। लोभ के वशीभूत होकर ही व्यक्ति अर्थार्जन करता है, परिग्रह के प्रति ममत्व-राग करता है। भगवान महावीर ने कहा-'जहा लाहो तहा लोहो लाहा लोहो पवड्ढई' अर्थात् जहाँ लाभ होता है, वहाँ लोभ होता है, लाभ से लोभ बढ़ता है। जैसे व्यक्ति में एक लाख रुपये प्राप्त करने का लोभ जागता है, एक लाख प्राप्त होते ही दस लाख प्राप्त करने का लोभ जाग जाता है और दस लाख प्राप्त होते ही एक करोड़ का लोभ जाग जाता है। इस प्रकार लोभवश व्यक्ति परिग्रह के लिए प्रवृत्त होता है। 3. सुविधावादी मनोवृत्ति
व्यक्ति सुख-सुविधा का जीवन जीना चाहता है। अपनी इस मनोवृत्ति की पूर्ति के लिए परिग्रह का विस्तार करता है ताकि सुख-सुविधा के साधनों को आसानी से जुटा सके।