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प्राचीन आचार्यों ने जैन गृहस्थ के लिए एक जीवनशैली निर्धारित की, जिसमें सप्त व्यसन के परिहार की बात थी। सप्त व्यसन हैं- 1. शराब नहीं पीना, 2. मांस नहीं खाना, 3. जुआ नहीं खेलना, 4. शिकार नहीं करना, 5. चोरी नहीं करना, 6. वेश्यागमन नहीं करना तथा 7. परस्त्रीगमन नहीं करना।
उस समय यह एक जीवनशैली बन गई थी कि जो जैन श्रावक होगा, वह इस आधार पर चलेगा। वही शैली आज तक चली आ रही है। पर इस बदलते हुए युग में, समाज की बदलती हुई अवधारणाओं में जीवनशैली भी विकृत होती जा रही है अतः उस पर पुनर्विचार करना आवश्यक प्रतीत हो रहा था।
आचार्य तुलसी ने इस विषय पर चिंतन किया और एक जैन गृहस्थ की जीवनशैली का निर्धारण किया, जिसमें जीवनशैली के मुख्य नौ सूत्र हैं। उनका मानना है कि इस जैन-जीवनशैली में जन-जन की जीवनशैली अर्थात् मानव मात्र की जीवनशैली बनने की क्षमता है। जो भी इस जीवनशैली को अपनाएगा, वह सुख और शांति का जीवन जी सकेगा। नवसूत्री जैन जीवनशैली
जैन जीवनशैली के नौ सूत्र निम्नलिखित हैं1. सम्यक् दर्शन, 2. अनेकान्त, 3. अहिंसा, 4. समण-संस्कृति, 5. इच्छा-परिमाण, 6. सम्यक् आजीविका, 7. सम्यक् संस्कार,