________________
162
पौषधधारी दिन में भी नींद आदि ले लेता है। प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन आदि में भी दोष लग सकता है जबकि पौषधोपवास प्रतिमा में पूर्णता से पालन किया जाता है। किसी भी प्रकार के दोष की संभावना नहीं रहती। पौषध के समय वह पूर्ण श्रमण-साधुवत् बन जाता है। यह गृहस्थ के विकास की चौथी भूमिका है। इस प्रतिमा का समय चार मास है। 5. कायोत्सर्ग प्रतिमा
। श्रावक की पांचवी प्रतिमा का नाम कायोत्सर्ग प्रतिमा है। इसे नियम प्रतिमा भी कहा जाता है। इसमें श्रावक के लिए रात्रि में कायोत्सर्ग करने का विधान है। इस प्रतिमा में पूर्व स्वीकृत चार प्रतिमाओं का निर्दोष पालन करते हुए श्रावक पांच विशेष नियमों को स्वीकार करता है
1. स्नान नहीं करना। 2. रात्रि-भोजन नहीं करना। 3. धोती की लांग नहीं लगाना। 4. दिन में पूर्ण ब्रह्मचारी रहना। 5. रात्रि में मैथुन की मर्यादा निश्चित करना।
इस प्रतिमा में मुख्य रूप से काम की आसक्ति, भोग की आसक्ति और देह की आसक्ति को कम करने का प्रयास किया जाता
6. ब्रह्मचर्य प्रतिमा __ श्रावक की छठी प्रतिमा का नाम ब्रह्मचर्य प्रतिमा है। पांचवीं प्रतिमा में श्रावक दिन में मैथुन सेवन का त्याग करता है किन्तु रात्रि में इसका नियम नहीं होता है। पांचवीं प्रतिमा के अभ्यास से श्रावक अपनी काम वासना पर विजय पाने का सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है