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7. सचित्तत्याग प्रतिमा, 8. आरम्भत्याग प्रतिमा, १. प्रेष्यत्याग प्रतिमा, 10. उद्दिष्टत्याग प्रतिमा,
11. श्रमणभूत प्रतिमा। 1. दर्शन प्रतिमा
श्रावक की प्रथम प्रतिमा का नाम है-दर्शन प्रतिमा। दर्शन का अर्थ है-सही दृष्टिकोण का निर्माण। इस प्रतिमा को धारण करने वाले श्रावक का सम्यक् दर्शन शुद्ध होता है। उसमें किसी भी प्रकार के अतिचार (दोष) की संभावना नहीं होती। श्रावक-धर्म और श्रमण-धर्म पर उसकी गहरी आस्था होती है। दर्शन प्रतिमा वाला अपने तीव्रतम क्रोध, मान, माया और लोभ को कमकर सम्यग् दर्शन को प्राप्त करता है। इस अवस्था में वह पुण्य को पुण्य और पाप को पाप के रूप में जानता है। सामान्य सम्यक्दृष्टि की अपेक्षा दर्शन प्रतिमाधारी सम्यक्दृष्टि में मलिनता कम होती है। इसमें व्यक्ति की दृष्टि दोषों की ओर न जाकर गुणों की ओर ही जाती है। यह गृहस्थ-धर्म की प्रथम भूमिका है। इस प्रतिमा का समय एक मास है। एक मास तक दर्शन में किसी प्रकार की मलिनता को न आने. देना और दर्शन को विशिष्ट दृढ़ता पर पहुंचा देना ही इस प्रतिमा का प्रयोजन है। 2. व्रत प्रतिमा
श्रावक की दूसरी प्रतिमा का नाम-व्रत प्रतिमा है। दर्शन प्रतिमा की दृढ़ता हो जाने के बाद व्रतों को दृढ़ करना होता है अतः पहले से स्वीकृत व्रतों को ओर अधिक दृढ़ करने के लिए व्रत प्रतिमा स्वीकार की जाती है। इस प्रतिमा में श्रावक अहिंसा, सत्य, अचौर्य,