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इस प्रकार समस्त दुःखों से छुटकारा चाहने वाले व्यक्ति को इन नौ तत्त्वों को जानना चाहिए। जानने के बाद आश्रव, पुण्य, पाप, बंध को मोक्षमार्ग में बाधक मानकर उन्हें छोड़ना चाहिए। संवर और निर्जरा को मोक्षमार्ग का साधक मानकर उनका अभ्यास करना चाहिए।
3. रत्नत्रय जैन दर्शन के अनुसार मनुष्य का साध्य है-मोक्ष को प्राप्ति या आत्मोपलब्धि। आत्मा का स्वरूप है-ज्ञान, सम्यक्त्व और वीतरागता। जब तक सम्यक्त्व विकृत, ज्ञान आवृत्त और वीतरागता अप्रकटित होती है तब तक हर व्यक्ति के लिए अपनी आत्मा साध्य होती है
और जब सम्यक्त्व मल रहित, ज्ञान अनावृत्त और वीतरागता प्रकट होती है तब वह स्वयं सिद्ध हो जाती है। साध्य की सिद्धि के लिए जिन हेतुओं का आलम्बन लिया जाता है, उन्हें साधन और उनके अभ्यास क्रम को साधना कहा जाता है।
आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में मोक्ष के तीन मार्ग बताए हैं-सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।
1. सम्यक् दर्शन, 2. सम्यक् ज्ञान, 3. सम्यक् चारित्र।
ये तीनों त्रिरत्न कहलाते हैं। लोक में रत्नों की तरह दुर्लभ होने के कारण इन्हें त्रिरत्न अथवा रत्नत्रय कहा जाता है। इन तीनों के योग से मोक्षमार्ग बनता है। पृथक्-पृथक् तीनों से मोक्ष-मार्ग नहीं बनता। जिस प्रकार बीमारी को दूर करने के लिए व्यक्ति दवा लेता है किन्तु वह दवा उसे तभी स्वस्थ बना सकती है जब वह ली जाने वाली दवा की क्षमता में श्रद्धा, दवा को लेने की विधि का ज्ञान तथा समय पर दवा का सेवन करता है। तीनों में से एक के भी