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इकाई-1
तत्त्व-मीमांसा
. दार्शनिक जगत् में तत्त्व-मीमांसा का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। द्रव्य या सत् तत्त्व मीमांसा का विशिष्ट अंग माना जाता है। जो भी अस्तित्ववान् है, वह द्रव्य या सत् कहलाता है। वह द्रव्य, गुण और पर्याय से युक्त होता है। जैन दर्शन में छः द्रव्य माने गए हैं। छः द्रव्यों में एकमात्र पुद्गल द्रव्य हमारी आंखों का विषय बनता है। पुद्गल का सूक्ष्मतम भाग परमाणु कहलाता है। परमाणु अविभाज्य होता है। जहाँ पर छः द्रव्य पाये जाते हैं, उसे लोक कहते हैं। प्रस्तुत इकाई में सत् का स्वरूप, द्रव्य-गुण-पर्याय, छः द्रव्य, परमाणु और लोकवाद का विवेचन किया गया है।
1. सत् का स्वरूप __ जैन दर्शन में सत्, तत्त्व, अर्थ, द्रव्य, पदार्थ, तत्त्वार्थ आदि शब्दों का प्रयोग प्रायः एक ही अर्थ में किया गया है अतः ये शब्द एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। 'सत्' शब्द का ऐतिहासिक दृष्टि से विमर्श करने पर यह स्पष्ट होता है कि जैन आगमों में सत् के लिए तत्त्व शब्द का प्रयोग किया गया है। गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से पूछा-भंते! तत्त्व क्या है? भगवान ने कहा-गौतम! तत्त्व वह है, जो उत्पन्न होता है, नष्ट होता है और ध्रुव (स्थिर) रहता है। इस संवाद से स्पष्ट है कि जैन आगमों में तत्त्व या द्रव्य की सत् संज्ञा नहीं थी। जब अन्य दर्शनों में 'सत्' इस संज्ञा का समावेश हुआ तब जैन दार्शनिकों के सामने भी यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि सत् किसे कहा जाए। सर्वप्रथम आचार्य उमास्वाति ने द्रव्य का सत् लक्षण करके इस समस्या का समाधान किया। इसके बाद उत्तरवर्ती अनेक आचार्यों ने भी द्रव्य को सत् के रूप में व्याख्यायित किया।