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वादका स्वरूप ।
उचित समझी जाय । इस लिये इस लघु लेखमें इतना ही न्याय तत्त्वका परिचय कराना उचित समझ कर अब मैं विराम लेता हूं ॥
ले. न्यायविजय । शार्दूलविक्रीडित-श्लोक. जिन्हों के उपदेश से, परिषदा, श्रीजैनसाहित्य की
पैदा की, मरुदेश, जोधपुर में, विद्वद्गणों से भरी । उन्हीं, श्री प्रभु धर्मसूरि चर के, आदेश हीसे, वहीं शिष्य-न्यायविशारद श्रमण ने, श्रीन्याय-शिक्षा रची
॥ समाप्ता न्यायशिक्षा ॥
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