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.. इस किताबमें, जैनन्यायशास्त्रों के अनुसार, अत्यंत संक्षेपमें
ओ जो मूल २ बातें बताई गयी हैं, उनका अनुक्रम, आगे धरा है, वहींसे, इस किताबके विषय, सुज्ञ लोगे मालम कर सकते हैं। यह पुस्तक, अच्छी तरह पढने पर, पढनेवाला अगर संस्कृतज्ञ हो, तो उसको, इसी पुस्तकके कर्ताके बनाये हुए, संस्कृतके 'न्यायतीर्थ प्रकरण' न्याय कुसुमाञ्जलि 'प्रमाण परिभाषावृत्ति न्यायालकार ' ये तीन न्यायग्रन्थ, क्रमसे अवश्य, पढने चाहिये, जिनसे बहुत अच्छी न्यायविद्याकी व्युत्पत्ति प्राप्त होगी।
निवेदकन्यायविजय ।