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नयरहस्ये शब्दनयः सिद्धसेनमतानुसारिणः, तेषामुक्तसूत्रविरोधः । न चोक्त एवैतत्परिहार एतन्मतपरिकार इति वाच्यम्, नामादिवदनुपचरितद्रव्यनिक्षेपदर्शनपरत्वादुक्तसूत्रस्य तदनुपपत्तेः, अधिकमन्यत्र ॥४॥
आदेशान्तरे “यथार्थाभिधानं शब्दः" इति त्रयाणामेकं लक्षणम् । भावमात्राभिधानप्रयोजकोऽध्यवसाय विशेष इत्येतदर्थः । तेन नातिप्रसङ्गादिदोषोपनिपातः । अनुसरण करनेवाले आचार्यों का कथन यह है कि "ऋजुसूत्र' द्रव्य निक्षेप को नहीं मानता है, इसलिए द्रव्य से भिन्न निक्षेपत्रय ही ऋजुसूत्र का अभिमत है, परन्तु ऐसा उन का कथन संगत नहीं है, कारण, “उजुसुअस्स एगे अणुवउत्ते एग दव्वावस्सयं पुहत्त णेच्छइ" इस सूत्र का विरोध उन के मत में उपस्थित होगा । यह सूत्र “ऋजुसूत्र' में भी द्रव्यनिक्षेप का अभ्युपगम बताता है अतः उन वादीयों के मत से, ऋजुसूत्र यदि द्रव्यनिक्षेप को न मानेगा, तब इस सूत्र के साथ विरोध स्पष्ट होता है। यदि ऐसा कहा जाय कि “वादी सिद्धसेन के मत का परिष्कार पूर्व में किया गया है, वहाँ इस विरोध का परिहार भी किया गया है कि ऋजुसूत्र अनुपयोगांश को लेकर वर्तमान आवश्यक पर्याय में द्रव्य का उपचार मानता है, इसलिए उपचरित द्रव्यनिक्षेप का अभ्युपगम ऋजुसूत्र को है । उक्त सूत्र का ऐसा तात्पर्य मान लेने पर विरोध नहीं होता है क्योंकि उपचरित द्रव्य का अभ्युपगम होने पर भी ऋजुसूत्र को मुख्य द्रव्य का अभ्युपगम उक्त सूत्र से सिद्ध नहीं होता है"-परन्तु यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि ऋजुसूत्र को जैसे अनुपचरित नामादि निक्षेपत्रय मान्य है, वैसे ही अनपचरित द्रव्यनिक्षेप भी मान्य है, इस तथ्य का प्रदर्शन उक्त सूत्र से होता है, अतः 'उपचरित द्रव्य निक्षेप का प्रदर्शन उस सूत्र से होता है' ऐसा मानकर विरोध का परिहार नहीं किया जा सकता । इसलिए उक्त सूत्र का विरोध वादीसिद्धसेन के मत में रहता ही है, अतः उन के मातानुसारी आचार्यो का कथन संगत नहीं है । इस विषय में अधिक चर्चा अन्य ग्रन्थ में की गई है, अतः जिज्ञासु उन ग्रन्थों के द्वारा ही विशेष ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।
[शब्दनय के निर्वचन में एक मत ] (आदेशान्तरे) तत्त्वार्थ सूत्रकार साम्प्रत, समभिरूढ और एवम्भूत इन तीनों नयों का "शब्दनय' में ही अन्तर्भाव मानते हैं, उस मत के अनुसार शब्दनय का लक्षण ग्रन्थकार बताते हैं । वही मत “आदेशान्तर" शब्द से यहाँ विवक्षित है । उस मत के अनुसार नयों के पाँच ही भेद माने गए हैं, नेगम, संग्रह व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द । एक आदेश (मत) ऐसा भी है जिस मे नय के सात भेद माने गए हैं-नेगम, संग्रह, व्यवहार. ऋजुसूत्र, साम्प्रत, समभिरूढ और एवम्भूत । उस आदेश की अपेक्षा से भिन्न आदेशानुसार शब्दनय का लक्षण पहले दिया जाता है । “यथार्थाभिधानं शब्दः” (१-३५) तत्त्वार्थ सूत्र के भाष्य में यह लक्षण बताया गया है, उसी लक्षण का उद्धरण इस ग्रन्थ में किया है । लक्षणान्तर्गत यथार्थ पद से नाम, स्थापना, द्रव्य इन तीनों निक्षेपों से अतिरिक्त भाव घटादिरूप अर्थ यहाँ विवक्षित है । शब्दनय वर्तमान एवं आत्मीय भाव घट को ही मानता