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________________ ७८ विश्वतत्त्वप्रकाशः - [प्रकाशन--सं. पं. सुखलाल तथा बेचरदास, गुजरात पुरातत्त्व मन्दिर, अहमदाबाद, सन १९२३-३० । इस संस्करण में विविध ग्रंथों से दिये हुए तुलनात्मक टिप्पण उल्लेखनीय हैं। ] . : ३६. वादिराज-आचार्य वादिराज द्रविडसंधान्तर्गत नन्दिसंघ अरुंगल अन्वय के प्रमुख आचार्य थे। वे श्रीपालदेव के प्रशिष्य, मतिसागर के शिष्य तथा रूपसिद्धिकर्ता दयापाल के गुरुबन्धु थे। कल्याण के चालुक्य राजा जयसिंह जगदेकमल्ल की सभा में वे सन्मानित हुए थे तथा सिंहपुर नामक ग्राम उन की जागीर में समाविष्ट था । दक्षिण के शिलालेखों में उन की प्रशंसा के अनेक पद्य प्राप्त होते हैं। - वादिराज के पांच ग्रन्थ प्राप्त हैं तथा एक अनुपलब्ध है। उन का पार्श्वनाथ चरित शक सं. ९४७ सन १०२५ में पूर्ण हुआ था। यशोधर चरित, एकीभावस्तोत्र, न्याय विनिश्चयविवरण व प्रमाणनिर्णय ये उन के अन्य प्रकाशित ग्रन्थ हैं । उन के 'त्रैलोक्यदीपिका' ग्रन्थ का उल्लेख मल्लिषेण प्रशस्ति में मिलता है । इन छह ग्रन्थों में प्रस्तुत विषय की दृष्टि से दो का परिचय आवश्यक है। ' न्यायविनिश्चयविवरण–यह अकलंकदेव के न्यायविनिश्चय की टीका है । लेखक ने इसे ' तात्पर्यावद्योतिनी व्याख्यानरत्नमाला' यह नाम भी दिया है । इस का विस्तार २०००० श्लोकों जितना है तथा यह गद्यपद्य मिश्रित है-पद्यों की संख्या २५०० के आसपास है। मलग्रन्थ के अनुसार इस टीका के भी तीन भाग हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान तथा प्रवचन । इन विषयों के बारे में विशेषकर प्रज्ञाकर आदि बौद्ध आचार्यों के आक्षेपों का वादिराज ने विस्तार से खण्डन किया है। [प्रकाशन—सं. पं. महेन्द्रकुमार, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी १९४९] प्रमाणनिर्णय-इस ग्रन्थ में प्रमाण, प्रत्यक्ष, परोक्ष व आगम इन चार अध्यायों में प्रमाणस्वरूप का विशद किन्तु संक्षिप्त वर्णन किया है। १) जैन शिलालेखसंग्रह भा. १ पृ. १०८-त्रैलोक्यदीपिका वाणी द्वाभ्यामेवोदमादिह । जिनराजत एकस्मादेकस्माद् वादिराजतः॥
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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