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________________ ४४ विश्वतत्त्वप्रकाशः [प्रकाशन- १ मूलमात्र – यशोविजय जैन ग्रंथमाला, बनारस १९०९; २ अभयदेवकृतटीकासहित- सं. पं. सुखलाल व बेचरदास, गुजरातपुरातत्त्वमंदिर, अहमदाबाद, १९२३-३०; ३ गुजराती अनुवाद व प्रस्तावनासहित-सं. पं. सुखलाल, पुंजाभाई जैन ग्रंथमाला १९३२; ४ इंग्लिश अनुवाद- श्वेताम्बर जैन एज्युकेशन बोर्ड, बम्बई १९३९] द्वात्रिंशिकाएं-कथाओं के अनुसार सिद्धसेनकृत द्वात्रिंशिकाओं की संख्या ३२ थी। किन्तु उपलब्ध द्वात्रिंशिकाओं की संख्या २१ है। नाम के अनुसार इन में प्रत्येक में ३२ पद्य होने चाहिए किन्तु उपलब्ध पद्यों की संख्या कम-अधिक है-१० वी द्वात्रिंशिका में दो और २१वीं में एक पद्य अधिक है तथा ८ वी में छह, ११ वी में चार एवं १५ वी में एक पद्य कम है। पहली पांच द्वात्रिीशिकाएं वीर भगवान की स्तुतियां हैं तथा इन की शैली समन्तभद्र के स्वयम्भस्तोत्रा से प्रभावित है। ११वी द्वात्रिंशिका में किसी राजा की प्रशंसा है। डॉ. उपाध्ये से मालूम हुआ कि डॉ. हीरालालजीने एक विद्वत्तापूर्ण निबंध लिखा है, और सिद्ध किया है. कि यह राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य है । छठी व आठवी समीक्षात्मक हैं। तथा अन्य १२ द्वात्रिंशिकाएं विविध दार्शनिक विषयों पर हैं। स्वरूप तथा विषय के समान इन द्वात्रिंशिकाओं में वर्णित मतों में भी परस्पर भिन्नता है । वेदवादद्वात्रिंशिका में उपनिषदों जैसी भाषा में परमपुरुषब्रह्म का वर्णन है। निश्चयद्वात्रिंशिका में मतिज्ञान व श्रुतज्ञान को अभिन्न माना है, साथ ही अवधिज्ञान व मनःपर्ययज्ञानको भी अभिन्न माना है। इस द्वात्रिंशिका में धर्म, अधर्म व आकाश द्रव्य की मान्यता भी व्यर्थ ठहराई है- जीव व पुद्गल दो ही द्रव्य आवश्यक माने हैं। पहली, दूसरी व पांचवी द्वात्रिंशिका में केवली के ज्ञान-दर्शन का उपयोग युगपत् माना १) न्यायावतार को भी द्वात्रिंशिकाओं में सम्मिलित करने से यह संख्या २२ होगी। २) पहली द्वात्रिशिका में 'सर्वज्ञपरीक्षणक्षम 'आचार्य का उल्लेख है यह पहले बताया ही है। ३) इस के कारण हस्तलिखितों में इस द्वात्रिंशिका को 'द्वेष्य' श्वेतपट सिद्धसेन की कृति कहा गया है । द्वात्रिंशिकाओं के मतभेद के विवरण के लिए देखिए-अनेकान्त वर्ष ९ पृ. ४३३-४४० ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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