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विश्वतत्त्वप्रकाशः
कई प्रश्नोत्तरों में नयबाद, अनेकान्तवाद तथा स्याद्वाद का उपयोग स्पष्ट है।
उपासकदशांग-इस का मुख्य विषय उपासक गृहस्थों के आचारधर्म का वर्णन है । प्रसंगवश पोलासपुर नगर में शब्दालपुत्र नामक उपासक के साथ महावीर का जो संवाद हुआ उस का विस्तृत वर्णन इस में आया है। आजीवकों के नियतिवाद का निराकरण एवं जैनदर्शन के क्रियावाद का समर्थन यह इस संवाद का विषय है।
प्रश्नव्याकरण-जैसा कि पहले बतलाया है-मल प्रश्नव्याकरण अंग में तार्किक विवेचन को प्रमुखता थी। किन्तु वर्तमान प्रश्नव्याकरण में पांच संवरद्वार (व्रत ) तथा पांच आस्रवद्वार ( पाप ) इन्हीं का विविध वर्णन है । प्रतीत होता है कि यह मूल ग्रन्थ पूर्णतः विस्मृत हो गया था अतः उस के स्थान में अन्य विषयोंका संग्रह किया गया।
अंगबाह्य आगम-इन में राजप्रश्नीय सूत्र के केशीप्रदेशी संवाद का उल्लेख पहले किया है। प्रज्ञापनासूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र तथा नन्दिसूत्र इन तीन ग्रन्थों में ज्ञान के प्रकारों का जो वर्णन-वर्गीकरण है वह भी उल्लेखनीय है।
७. भद्रबाहु-आगमों के स्पष्टीकरण के लिए जो साहित्य लिखा गया उस में निर्यक्तियोंका स्थान सर्वप्रथम है । आचार तथा सूत्रकृत ये दो अंग, आवश्यक, उत्तराध्ययन एवं दशवैकालिक ये तीन मूलसूत्र, बृहकल्प, व्यवहार एवं दशाश्रुतस्कन्ध ये तीन छेदसूत्र, सूर्यप्रज्ञप्ति यह उपांग
और ऋषिभाषित तथा संसक्त ये स्फुट ग्रन्थ-ऐसे ग्यारह ग्रन्थोंपर निर्यक्तियां लिखी गईं । प्राकृत गाथाओं में निबद्ध नियुक्ति का उद्देश तीन प्रकार का है-विशिष्ट शब्दों की व्युप्तत्ति बतलाना, ग्रन्थ का पूर्वापर सम्बन्ध बतलाना तथा कुछ चुने हुए विषयों का विवेचन करना । नियुक्तियों के कर्ता भद्रबाहु थे । टीकाकारों की परम्परा के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य के समकालीन भद्रबाहु ( प्रथम ) ने ही नियुक्तियों की रचना की थी। किन्तु आवश्यक नियुक्ति में वीरनिर्वाण के बाद सातवी सदी तक की
१) भगवतीसूत्र के तार्किक विषयों का विस्तृत अध्ययन पं. दलसुख मालवणिया ने न्यायावतारवार्तिकवृत्ति की प्रस्तावना में तथा 'आगमयुग का अनेकान्तवाद' इस पुस्तिका में प्रस्तुत किया है।