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________________ २५९ -७९ ] मीमांसादर्शनविचारः सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये तत्र तन्वा विसृजन्ति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ॥ इत्यादीनामसत्यत्वनिश्चयोऽपि गङ्गायमुनयोःसंगमे त्यक्तशरीरस्यादिभरतस्य कृष्णमृगत्वेनोत्पत्तिश्रवणाद् भवति । अथ तेषामर्थवादत्वादसत्यत्वमपि स्यादिति चेन्न । 'यस्मिन् देशे नोष्णं न क्षुन्न ग्लानिः पुण्यकृत एव प्रेत्य तत्र गच्छन्ति' इत्यादीनामपि अर्थवादत्वेन असत्यत्वप्रसंगात्। तथर च स्वर्गादेरभावात् 'ज्योतिष्टोमेन स्वर्गकामो यजेत' इत्यादिवाक्यानामसत्यत्वं निश्चीयते ज्योतिष्टोमयाजिनःस्वर्गप्राप्तेरभावात्। अपि च वेदस्याप्रामाण्यमपि प्रागेव प्रमाणैः प्रतिपादितमित्यत्रोपारंसिष्म । यदप्यन्यदवादीत् ' अकुर्वन् विहितं कर्म प्रत्यवायेन लिप्यते' इति तदप्यसत्। वनस्पतिमृगपशुपक्षिशूद्रादिश्वपचान्तानां वेदोकनित्यनैमित्तिकाद्यनुष्ठानाकरणेऽपि प्रत्यवायविलेपाभावात् । ननु तान् प्रति नित्यनैमित्तिकाद्यनुष्ठानविधानाभावात् तेषामकरणेऽपि न प्रत्यवायविलेपः। अपि तु त्रैवर्णिकानुद्दिश्य विहितत्वादकरणे तेषामेव प्रत्यवायविलेप इति चेत् तर्हि त्रैवर्णिकानां तदकरणे प्रत्यवायेन दुर्गतिप्राप्तिः तत्करणे न होने पर अमृतत्व की प्राप्ति कही है किन्तु आदिभरत का वहां मृत्यु होकर भी वह कृष्ण हरिण हुआ ऐसा कहा है। इस लिये वेदवाक्य परस्परविरुद्ध होने से अप्रमाण हैं । इन में अश्वमेध के फल बतलानेवाले वाक्य अर्थवाद हैं अतः शब्दशः सत्य नही ऐसा समाधान मीमांसक प्रस्तुत करते हैं । किन्तु ऐसा मानने पर 'पुण्य करनेवाले लोग ही मृत्यु के बाद वहां पहुंचते हैं जहां उष्णता, भूख, थकान आदि की बाधा नही होती' इत्यादि वाक्यों की सत्यता भी संदिग्ध होगी। यदि स्वर्ग का अस्तित्व ही संदिग्ध हो तो ' स्वर्ग की प्राप्ति के लिए ज्योतिष्टोम यज्ञ करना चाहिए' आदि वाक्य निर्मल होंगे। __'विहित कर्म न करने से हानि होती है ' यह वाक्य भी योग्य नही है। वनस्पति, पशुपक्षी तथा शूद्र, अन्त्यज आदि विहित कर्म नही करते किन्तु उन्हें इस से कोई हानि नही होती। ये वैदिक कर्म सिर्फ त्रैवर्णिकों (ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्यों) के लिए ही विहित हैं - अन्य १ दशरथभरतादिवर्णनायुक्तानां वेदवाक्यानाम् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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