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________________ २३० विश्वतत्त्वप्रकाशः [६९तस्य द्रव्यसंयोगाभावे च संयुक्तसमवायेन द्रव्यगतगुणकर्मसामान्यानां संयुक्तसमवेतसमवायेन गुणकर्मगतसामान्यानां च प्रकाशनं न जाघट्यते । तथा श्रोत्रस्य नाभसत्वाभावात् शब्दस्य च आकाशगुणत्वाभावात् समवायसंबन्धेन श्रोत्रं शब्देषु समवेतसमवायसंबन्धेन शब्दगतसामान्येषु संवित्ति जनयतीत्यसंभाव्यमेव । समवायसंबन्धस्य स्वरूपलक्षणप्रवृत्त्यनुपपत्त्या प्रागेव प्रमाणतो निराकृतत्वाच्च । [६९. संनिकर्षस्वरूपनिषेधः । ] यदप्यवोचत्-पञ्चविधसंबन्धेन संबद्धार्थानां विशेषणविशेष्यत्वेन प्रवर्तमानदृश्याभावसमवाययोः संबद्धविशेषणविशेष्यभावसंबन्धेन संबद्धाः सन्तः नयनरश्मयः संवेदनं जनयन्तीत्यादि तदप्यनुचितम्। दृश्याभावसमवाययोर्द्रव्यादिभिः सह संयोगसमवायसंबन्धरहितत्वेन विशेषण. विशेष्यभावानुपपत्तेः। ननु तयोः संबन्धरहितत्वेऽपि विशेषणविशेष्यभावो जाघटीतीति चेन्न । संयोगसंबन्धेन संयुक्तस्यैव दण्डादेः समवायसंबचक्षु से सटे हुए पदार्थ को भी जान पाती, किन्तु ऐसा होता नही है-चक्षु गोलपर लगाये गये काजल आदि का चक्षु से ज्ञान नही होता । अतः चक्षु का द्रव्य से संयोग सम्बन्ध होता है आदि कथन ठीक नही। तथा समवाय सम्बन्ध के अस्तित्व का पहले निरसन किया है उस से संयुक्त समवाय आदि सम्बन्ध भी निराधार सिद्ध होते हैं। कर्णेन्द्रिय आकाश निर्मित नही है अत: शब्द का समवाय सम्बन्ध से ज्ञान होता है यह कथन भी ठीक नही है। ६९. संनिकर्ष स्वरूपका निषेध-पांच प्रकारों से सम्बद्ध पदार्थों के विशेषण-विशेष्य रूप से दृश्याभाव तथा समवाय होते हैं उन का ज्ञान विशेषण- विशेष्यभाव सम्बन्ध से होता है यह कथन भी अनुचित है। दृश्याभाव तथा समवाय का द्रव्यों से संयोग या समवाय सम्बन्ध नही होता अतः उन का द्रव्यों से विशेषण-विशेष्य भाव होना संभव नही है। दण्ड आदि के संयोगसे अथवा रूप आदि के समवाय से ही दण्डवान् , रूपवान आदि विशेषणविशेष्य सम्बन्ध बतलाया जा सकता है। गोमान् धनवान् आदि उदाहरणों में गायों का अथवा धन का कोई सम्बन्ध न होने पर भी विशेषण विशेष्यभाव होता है यह कथन
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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