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________________ २१४ विश्वतत्त्वप्रकाशः [६३हेतुरिति चेन्न । सत्तासामान्यम् अनेकं भवति अद्रव्यत्वात् आश्रितत्वात् सकलमर्तिमदद्रव्यसंयोगरहितत्वात् महापरिमाणानधिकरणत्वात् पर. तन्त्रैकरूपत्वात् रूपादिवदिति सत्तासामान्यस्यानेकत्वसिद्धेः। तथैवान्यसामान्यस्याप्यनेकत्वसिद्धिरिति नानैकान्तिको हेतुरिति निर्दुष्टेभ्यो हेतुभ्यः समवायस्यानित्यत्वासर्वगतत्वानेकत्वसिद्धिरेव स्यात् । [६३. प्राभाकरसंमतसमवायस्वरूपनिषेधः।] ननु तथैव समवायस्यानित्यत्वमसर्वगतत्वमनेकत्वमस्तु, अस्माभिरपि तथैवाङ्गीक्रियत इति प्राभाकराःप्रत्यवोचन् । तेऽप्ययुक्तिशा एव । समवायस्यानित्यत्वे उत्पत्तिसामग्र्या असंभवात् । कुत इति चेत् समवायस्योत्पत्तावुपादानसहकारिकारणानामसंभवात्। ननु अवयवावयविप्रभृति. समवायिभ्यां निमित्तकारणभूताभ्यां समवायः समुत्पद्यत इति चेन्न। भावरूपकार्याणां निमित्तकारणमात्रेण समुत्पत्तरसंभवात्। तथा हि। विवादाध्यासितः संबन्धः३ समवायिकारणमन्तरेण नोत्पद्यते भावत्वे सति कार्यत्वात् पटादिवत्, संबन्धत्वात् संयोगवत् । तथा विवादापन्नः महान परिमाण से रहित है अतः सत्ता-सामान्य को भी अनेक (प्रत्येक व्यक्ति में भिन्नभिन्न ) ही मानना चाहिए। तात्पर्य - सामान्य तथा समवाय दोनों को अनित्य, अव्यापक एवं अनेक मानना आवश्यक है। ६३. प्राभाकर समवाय का निषेध-वैशेषिकों द्वारा माने हुए समवाय के स्वरूप में उपर्युक्त सब दोष देख कर प्राभाकर मीमांसकों ने समवाय को अनित्य, अव्यापक तथा अनेक माना है। किन्तु यह मत भी योग्य नही है। समवाय यदि अनित्य है तो उस की उत्पत्ति के योग्य कारण नही हो सकते - उपादान अथवा सहकारी कारणों का अभाव होता है । अवयव, अवयवी आदि निमित्त कारणों से समवाय की उत्पत्ति मानना उचित नही क्यों कि जो भावरूप कार्य हैं वे सिर्फ निमित्त कारणों से उत्पन्न नही होते ( उनकी उत्पत्ति में उपादान कारण होना जरूरी है )। समवाय यदि पट आदि के समान भावरूप ( वस्तुतः १ अनित्यत्वे सति उत्पत्तिमत्त्वं भवति तदभावः। २ प्रभृतिशब्देन गुणगुणिनौ क्रियाक्रियावन्तौ जातिव्यक्ती। ३ समवायः। ४ द्रव्यसामान्यविशेषसामान्यसमवायाः इति पदार्थाः।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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