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________________ २०४ विश्वतत्त्वप्रकाशः [६० मिति चेत् ' दृष्टान्ते दृष्टस्यानिष्टधर्मस्य दाान्तिके योजनमुत्कर्षसमा जातिः' इति वचनात् । तद् यथा । अनित्यः शब्दः कृतकत्वात् पटवदि. त्युक्ते पटेतावदनित्यत्वम् अश्रावणत्वेन व्याप्तं तदनित्यत्वं व्याप्यं शब्देऽपि यद्यङ्गोक्रियते तहश्रावणत्वं व्यापकमप्यङ्गीकर्तव्यमिति तस्योदाहरणम् । एतेन आत्मा मूर्तोऽनित्यः सावयवश्च अनणुत्वे सति क्रियावत्वात् तथा अनणुत्वे सति असर्वगतद्रव्यत्वात् संहरणविसर्पणवस्वात् पटादिवदित्यादिकं निरस्तम् । वाद्यसिद्धापसिद्धान्तोत्कर्षाणामत्रापि समानत्वात् । तस्मादात्मनः सर्वगतत्वाभावः प्रमाणत एव निश्चितः स्यात् । [६०. आत्मनः अणुत्वनिषेधः।] ननु आत्मनस्तथा सर्वगतत्वाभावोऽस्तु तदस्माभिरप्यङ्गीक्रियते तस्याणुपरिमाणत्वाभ्युपगमात् । तथा हि । आत्मा अणुपरिमाणाधिकरणः शानासमवाय्याश्रयत्वात् मनोवदिति अपरः कश्चिदचचुदत्। सोऽप्यतत्त्वज्ञ एव । मनोद्रव्यस्याणुपरिमाणाधिकरणत्वाभावेन दृष्टान्तस्य साध्यविकलहोगा तो अनित्य होगा। किन्तु इस प्रकार दृष्टान्त का कोई गुण दार्टान्त में आवश्यक मानना दोषपूर्ण है – इसे उत्कर्षसमा जाति कहते हैं। इसी का दूसरा उदाहरण देते हैं । शब्द वस्त्र के समान कृतक है अतः अनित्य है यह अनुमान है। यहां वस्त्र यह दृष्टान्त अश्रावण है - कान से उस का ज्ञान नही होता। किन्त इस से शब्द को भी अश्रावण मानें तो यह दोषपूर्ण होगा। अतः आत्मा असर्वगत होगा तो अनित्य होगा आदि कथन निरुपयोगी है। इसी प्रकार आत्मा असर्वगत होगा तो मत होगा, सावयव होगा. क्रियायुक्त होगा, संकोचविस्तार से युक्त होगा आदि आपत्तियां भी सदोष होगी। तात्पर्य - आत्मा सर्वगत नही है यही प्रमाणसिद्ध तथ्य है। ६०. आत्मा अणुमात्र नहीं है-वेदान्तपक्ष के कोई दार्शनिक आत्मा को सर्वगत न मान कर अणु आकार का मानते हैं। उन का कथन है कि आत्मा मन के समान ज्ञान का असमवायी आश्रय है अतः वह मन के समान अणु आकार का सिद्ध होता है। किन्तु यह कथन अयोग्य है । मन अणु आकार का नही है क्यों कि वह चक्षु आदि के १ रामानुजमतानुसारी।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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